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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
राजेन्द्र ने बात को स्पष्ट किया। चंबल की घाटी में अपहृत हुए युवकों में से ही एक राजेन्द्र को देखकर मास्टर के आश्चर्य का पार नहीं रहा । वह उसे रामनारायण गुप्ता के वहां ले गये। अपहत युवकों के सगे सम्बंधी गुप्ता के घर पर ही थे। आयंबिल का तप ! महामंत्र नमस्कार का जप ! और दादा शंखेश्वर का रटन। तप जप और रटन के अखंड त्रिवेणी संगम से गुप्ता का घर श्रद्धामन्दिर बन गया था। जब तक गुम हुए युवक न मिलें तब तक श्रद्धा की शरण न छोड़ने की सभी की तैयारी थी । राजेन्द्र ने गुप्ता के घर प्रवेश किया और सभी फटी आंखों से उसे देखने लगे। शंका-कुशंकाओं की अनेक परछाइयां सभी की आंखो के सामने से गुजरने लगीं।
" रे ! राजेन्द्र अकेला ! सुरेश का क्या हुआ? नवीन कहां है? चीनु नहीं आया?" यहां का वातावरण और सगे-संबंधियों के ऊँचे स्वरों को देखकर ही राजेन्द्र की आँखों में पानी भर आया। उसका आगमन अभी कइयों को एक आश्चर्य लगता था। पुलिस में खबर देने के लिए टेलीफोन के नंबर घुमाने की तैयारी देखकर राजेन्द्र बोल उठा, 'ठहरो ।'
और राजेन्द्र ने अपनी वचनबद्धता की बात की। सभी के हाथ नीचे हो गये। दूसरा हो भी क्या सकता था? धर्मसंकट था। एक ओर सरिता एवं दूसरी और सिंह का घाट था। किस संकट से बचा जाये ?
राजेन्द्र के सिर पर लाख रूपये इकट्ठे करने की भारी जिम्मेदारी थी। इस जवाबदारी को भूलना अथवा विलम्ब करने का आखिरी अंजाम तीन युवकों की मौत ही थी । लाख रूपये इकट्ठे करने हेतु मुम्बई का सम्पर्क अनिवार्य था। राजेन्द्र ने टेलीफोन घुमाना प्रारंभ किया किन्तु विधि के मोड़ों की इसे क्या खबर थी? जिस अदृश्य शक्ति के चमत्कार को प्राप्त कर वह स्वयं आगरा पहुंचा था, उसका मुख्य चमत्कार बाकी ही था। राजेन्द्र को पैसा इकट्ठा करते छोड़कर अब कुछ चंबल की घाटी के बारे में बात करें।
चंबल के चारों ओर हजार की संख्या में पुलिस पहरे से सज्ज थी ।
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