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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - चौपट होने की संभावना थी। ठाकुर सावधान हो गया था। आसपास के हालचाल से वाकिफ रहने हेतु ठाकुर ने थोड़े डाकुओं को छिपा दिया था। हमको अब अपनी चिन्ता नहीं थी। राजेन्द्र की कुशलता के लिए हम बार बार प्रकट प्रभावी श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की प्रार्थना करते थे। महामंत्र का जाप चालु ही था। राजेन्द्र की कुशलता ही अब हमारी कुशलता थी। उसे पुलिस की खड़ी फौज के बीच में से निकलकर आगरा पहुंचना था।
दोपहर दो बजे राजेन्द्र ने चंबल से विदा ली थी। राजेन्द्र लगभग साढ़े छः बजे भादरण स्टेशन के सिग्नल को देखकर हर्ष विभोर बन गया। इन चार घण्टों का कठिन प्रवास भगवान श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ और महामंत्र नवकार की सहायता के बिना फलीभूत होना मुश्किल था। राजेन्द्र की अडिग श्रद्धा अभय-कवच बन गयी और वह सही-सलामत रूप से स्टेशन पर पहुंच गया। गाड़ी मिलने की संभावना नहीं थी। छः बजे थे और गाड़ी का समय साढ़े पांच बजे का था, फिर भी राजेन्द्र ने प्लेटफॉर्म पर पैर रखा और गाड़ी की सीटी सुनाई दी। जानने को मिला कि आज गाड़ी आधा घण्टा विलम्ब से थी। अन्तर के आंगन में विराजमान श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ दादा को मन ही मन नमन कर राजेन्द्र गाड़ी में बैठ गया।
गाड़ी आगरा की तरफ रवाना हुई। छः से रात दो बजे तक का समय राजेन्द्र ने विचार समुद्र में गोता खाते हुए पूरा किया। सुबह का दृश्य उसकी आंखों के सामने ही था। सुरेश, नवीन एवं चीनुभाई अभी चंबल की चंगुल में ही थे। उनका विचार इसकी आंखों को, इसके अंतर को आराम करने नहीं देता. था। आगरा पहुंचते ही स्वजनों में फैलनेवाले विस्मय की भी वह कल्पना कर सकता था। ___वह दो बजे आगरा पहुंचा। राजेन्द्र सीधा ही यात्रियों की खोज में निकला। स्टेशन मास्टर से पूछताछ करने पर उन्हें राजेन्द्र पर शक हुआ कि क्या इन डाकुओं की लूट अभी तक शेष है!
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