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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? . निम्नलिखित छोटे-बड़े अनेक चमत्कारों ने नवकार के प्रति मेरी श्रद्धा में वृद्धि की।
मैं बचपन में मित्र के साथ कपड़े धोने गया था। कपड़े धोने के बाद तालाब में नहाने के लिए पड़े। स्नान की मस्ती में गहरे पानी का ख्याल नहीं रहा। हम डूबने लगे। यदि मदद न मिलती तो निश्चित ही डूब जाते किन्तु किसी अनजान व्यक्ति ने हम दोनों के हाथ पकड़कर बाहर निकाला। हम स्वस्थ होते उससे पहले ही वह आदमी चला गया!
संवत् 1995 के पोष सुदि 9 प्रभात में नवकार मंत्र का चमत्कारी योग देखा। परोपकारी पानाचंदभाईजी जिनकी पूरी जिन्दगी परोपकार में ही व्यतीत हुई थी, उनके छोटे भाई देवचन्दभाई की पत्नी अर्थात मेरे मातृश्री को सुबह छाणों के पिंजरे में से छाणे (गोबर का ईंधन) लेते दाहिने हाथ की तीसरी अंगुली में भयंकर काले नाग ने डंस दिया। वे बेहोश होकर गिर गये। भाईजी बिल्कुल घबराये बिना नवकार मंत्र का स्मरण कर जान को जोखिम में लेकर अपने मुंह से इस डंस का जहर चूसने लगे। डंस चूसते जाते और नमक के पानी तथा तिल के तेल के कुरले करते जाते। | इकट्ठे हुए सभी यह देखकर आश्चर्यमुग्ध बन गये। मातृश्री होश में आ |गये। मृत्यु का भय हट गया। चारों ओर से धन्यवाद की वृष्टि हुई।
भाईजी की आखरी अवस्था में संवत् 1995 के पोष सुदि 9 को | इनकी तबीयत खूब बिगड़ी। गला बार बार सूखने लगा। उन्होंने घर में | |सभी को कहा, "मेरे पीछे रोना नहीं।" सबने सहमति दी। रात में खांसी
और कफ की बहुत ही पीड़ा थी, किन्तु वह समता भाव में रहे। नवमी की रात को गले में कफ भर गया। वह निकल नहीं सका। दो चम्मच पानी पीने से कफ की पीड़ा कुछ शान्त हुई। प्रभात में चार बजे उठकर बैठ गये। धीरे-धीरे सभी सुन सकें वैसे नवकार मंत्र बोलने लगे। नवकार बोलते-बोलते बिस्तर में ढल पड़े। शरीर छोड़कर यह दिव्य आत्मा उर्ध्वगामी बनी। यह चमत्कार देखकर नवकार के प्रति इतना प्रेम जगा कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता है।
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