________________
-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मजदूरी करता है। धन, अन्न और औषधि की शक्ति में हम श्रद्धा रखकर बर्तते हैं, उसी प्रकार नवकार की शक्ति में भी प्रथम दृढ़ श्रद्धा जगानी चाहिये। यह श्रद्धा होने के बाद की गयी साधना बीच में अटकती नहीं है। श्रद्धा होती है तो ईष्टफल की प्राप्ति में होते हुए विलम्ब से या बीच में आती अड़चनों से बिना विचलित हुए साधक दृढतापूर्वक साधना में अडिग रहता है। इसी कारण उसकी साधना फल तक अवश्य पहुंचती है।
असन्तुष्ट बुद्धि श्रद्धा को स्थिर नहीं होने देती है, इसलिए बुद्धि को संतोष देने के लिए, हम थोड़ा यह भी विचार कर लें कि नवकार का |जप किस प्रकार ईष्ट साधक बनता है?
__अश्राव्य ध्वनि तरंगों (SUPER SONICS) की शक्ति का आधुनिक विज्ञान द्वारा दिये गये परिचय से जप की असर समझने में सरलता हुई है। अश्राव्य ध्वनि तरंगें अपने कान की पकड़ में नहीं आ सकतीं, किन्तु विज्ञान ने सिद्ध किया है कि सुनाई नहीं देती तरंगें भी नाजुक यंत्रों की सफाई कर सकती हैं। वह थोड़े ही सेकंडों में पानी गरम कर देती हैं। पार्थिव जगत में ध्वनि तरंगों का इतना असर होता हो, तो क्या यह संभव नहीं कि सतत जप करने वाले व्यक्ति के शरीर और उसके आसपास के वायुमण्डल में जप की ध्वनि तरंगें कुछ सूक्ष्म असर को जन्म दें और साधक के नाड़ी तंत्र और सूक्ष्म शरीर पर असर कर, उसके चित्त में परिवर्तन कर दें? जप से बुद्धि निर्मल बनती है, जिससे साधक मोह को पहचान लेता है और धर्म को समझ सकता है।
प्रतिदिन निश्चित समय पर जप की ध्वनि में एकाग्र होकर, जप करने से चित्त की चंचलता शीघ्र कम होती है और एकाग्रता बढ़ती है। जप करते समय परमेष्ठिओं के गुणों के या दूसरे किसी चिंतन में नहीं पड़कर केवल जप की ध्वनि में लक्ष्य रखकर जाप करना चाहिये। जिससे चित्त एकाग्र होकर जप में जुड़ेगा। इसका अभ्यास होने के बाद स्वतः मानसिक जप होने लग जायेगा। चलते-फिरते, उठते-बैठते, मन में अरिहंत परमात्मा का स्मरण करने की आदत डाली हो तो चित्त अधिक से
15