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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
नवकार के प्रति समर्पित भाव के द्वारा स्वयं के कर्तृत्वभाव का विसर्जन । साधना में इन बातों का क्या महत्त्व है वह हम अब देखेंगे।
(1) साधना की आधार शिला : श्रद्धा
पहली बात यह है कि ' नवकार से सद्गति मिलेगी ही" ऐसे दृढ़ विश्वास के साथ श्री गुलाबचन्द भाई ने नवकार गिने थे। जब यमराज सामने आते हैं, तब ईश्वर के नाम में मानवी सहजता से जुड़ता है। नास्तिक मानव भी मृत्यु के मुख में से बचने के लिए भगवान को पुकारता है। गुलाबचन्द भाई के सामने जब मौत आ रही थी उस समय उन्हें याद आया कि, " नवकार से सद्गति मिल जाएगी", इसलिए वे उसमें दृढ़ विश्वासपूर्वक लीन बन गये।
किसी भी साधना में "श्रद्धा" महत्त्व का बल है। श्रद्धा के अभाव में साधना फल तक नहीं ही पहुंचती । मुम्बई जाने के रास्ते पर चले, पचास माईल जाकर यदि शंका हुई कि यह रास्ता मुम्बई का है या नहीं, तो उस राह में प्रयाण रुक जायेगा । शंकाग्रस्त व्यक्ति भले ही प्रयाण चालु रखे, फिर भी उसमें वेग नहीं आयेगा और किसी भी वक्त उस रास्ते को छोड़ने में देर नहीं लगेगी; उसी प्रकार " नवकार अवश्य ईष्टप्रापक है" यह श्रद्धा जिसे नहीं है, वह नवकार की साधना की पूर्णता तक नहीं पहुंच सकता। ईष्टफल की प्राप्ति से पूर्व ही वह नवकार की साधना को छोड़कर दूसरी किसी साधना के पीछे दौड़ेगा । इसलिए श्रद्धा बिना का नवकार ईष्टसाधक नहीं बन सकता।
अन्न खाने से भूख मिटेगी और शरीर पुष्ट होगा, जहर से मृत्यु होगी और दवा की छोटी पुड़ी से रोग मिट जाएगा, ऐसा मनुष्य को दृढ़ विश्वास है, श्रद्धा है, तसल्ली है, इसी कारण वह बार-बार भूख लगने पर भी अन्न की ओर मुड़ता है और जहर के कण को भी प्रयत्नपूर्वक टालता है। धन बढ़ने से हमेशा सुख बढ़ता ही है ऐसा नहीं दिखता, फिर भी लक्ष्मी से सुख मिलता है ऐसी श्रद्धा होने के कारण मनुष्य काली
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