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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? चौदह पूर्व के सार, अनादिसिद्ध ऐसे नवकार मंत्र का खूब-खूब स्मरण | करो और मुक्ति वधू को प्राप्त करो।
मानव जिससे देव बनता है।
साला एवं बहनोई की घटित यह ताजी घटना है। वि. सं. 1997198 की यह सही हकीकत है।
मारवाड़ का शिवगंज जैनों की बड़ी आबादी वाला शहर. है। वहां के एक श्रीमंत गृहस्थ बीमार पड़े। इन सेठ के बहनोई मद्रास रहते थे। बहनोई को लगा कि साले की तबीयत खराब है, आखरी अवस्था है, मुझे जाना चाहिये। किंतु सांसारिक अनेक जिम्मेदारियों के कारण वहां नहीं जा सके और साले के प्राण उड़ गये। साले की मृत्यु के बाद एक बार बहनोई रात्रि में शैय्या पर सोये हुए थे। तभी स्वप्न में अपने साले को देखा। बातचीत में साले ने कहा कि, "मैं अभी व्यंतर देवलोक से तुम्हारे साथ बातचीत कर रहा हूँ। बहनोई ने पूछा कि, तुम व्यंतर गति में कहां से? आश्चर्य की बात है कि तुम व्यंतर लोक में पहुंच गये।'! .
तब पूर्व के साले ऐसे व्यंतर देव ने जवाब दिया, "भाई! तुम्हारी बात एकदम सही है। मेरा जीवन ऐसा सुन्दर एवं आदर्शमय नहीं था कि |जिससे मैं व्यंतरलोक में उत्पन्न हो सकू। किंतु मैं बिस्तर पर था, जीवन
की आशा नहीं थी तब सगे-सम्बंधियों ने गुरुदेव को विनति की। गुरु महाराज ने मुझे अंतिम आराधना करवाई, खूब-खूब नवकार सुनाए और कुछ प्रतिज्ञाएं भी दी और मेरे जीवन में हुई गल्तियों की निंदा गर्दा करने करने का सूचन दिया। बस, इन गुरुदेव ने मुझे नवकार मंत्र सुनाये, इसके ध्यान से मेरे प्राण निकले। इसके प्रभाव से मैं नीच गति में जाने वाला आज व्यंतर देवलोक में उत्पन्न हुआ हूँ।"
इतनी बात होने के बाद बहनोई जग गये और रात की बात दिमाग में रखी। अभी वे मद्रास में थे। मद्रास से इन्होंने तुरंत ही शिवगंज पत्र लिखा कि, "जब मेरे साला गुजर गये, उस समय कोई गुरु महाराज वहां |
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