________________
• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
" एक बार परदेश जाते, मेरी पूजा की विशेष पेटी भूल गया। जिस कारण विशेष विमान के द्वारा मंगवाई, पूजा की, फिर शो (खेल) प्रारम्भ किया। "
मैं छः महिने मेरा प्रयोग चालु रखता हूँ। फिर एक माह कलकत्ता में आराम करता हूँ। वापिस छः माह चालु रखता हूँ, जिसमें जापान, अमेरिका, होंगकोंग वगैरह स्थानों पर जाना होता है।" सरल और शांत प्रकृति के के. लाल ने अपने स्वानुभव बताये । निष्कपट भाव से साधना की जानकारी दी। उन्हें आनन्द हुआ। भावपूर्वक गुरुपूजन कर वासक्षेप
डलवाया।
पू. गुरु महाराज - " अब संसार सागर को तैरने का जादू सीखने जैसा है। दूसरी बार दर्शनार्थ मिलने की इच्छा के साथ सभी बिखरे ।
( डीसा से प्रकाशित होने वाले "रखेवाल" दैनिक के दि. 15.10.85 के अंक में आए समाचार की कटिंग पू. गणिवर्य श्री कीर्तिसेन विजयजी म. सा. (हाल आचार्य श्री) ने भेजी, जो साभार यहाँ पेश की गयी है | )
समाधि मरण की चाबी - श्री नवकार &
मेरे पिताजी की युवावस्था भारत की आज़ादी की लड़ाई के समय बीती होने से वे देशभक्ति के रंग में रंगे हुए थे, जिससे वे व्यापार-व्यवहार में नीति एवं नैतिक मूल्यों का पूर्णतः ध्यान रखते थे। उनके जीवन में सादगी, सच्चाई, प्रामाणिकता एवं मानवसेवा जैसे गुण पूर्ण रूपेण विकसित थे।
जीवन के अंतिम दिन कच्छ में बीताने की इच्छा होने के कारण, पीछे के दिनो में वे व्यापारिक व्यवहारों से निवृत्त होकर कच्छ - कांडागरा गांव में रहते थे।
एक दिन उनके गले के पास गांठ दिखाई दी। कच्छ के स्थानीय | डॉक्टर को बताने पर उसने मुंबई जाँच करवाने की सलाह दी। वहां के
221