________________
- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
निष्णात डॉक्टर ने उसे कैंसर के तीसरे चरण की गांठ घोषित की। सब घबरा गये । टाटा अस्पताल में इलाज शुरू हुआ। सम्पूर्ण रोगमुक्त हो सकें ऐसी परिस्थिति नहीं थी। उस गांठ की पीड़ा अतिशय त्रासदायक न बने इस कारण आयुर्वेदिक उपचार आरंभ किये, जिससे पीड़ा कम हो गई किंतु मानसिक शांति नहीं मिली।
उस दौरान हमारे संबंधी श्री चांपशी प्रेमजी उनको प्रतिदिन सवेरे नवस्मरण सुनाते ओर धार्मिक वांचन करते थे, जिसमें पिताजी लीन हो जाते थे। उन्हें प्रतिदिन सुनकर नवस्मरण मुखपाठ हो गये थे। चांपशीभाई एक बार बोलने में भूल गये तो उन्होंने तुरंत भूल सुधार दी। एक दिन हमारे हितैषी, मित्र श्री के. के. शाह आए और उन्होंने विनम्रभाव से बताया कि, "यदि तुम पू. आ. भ. श्री विजयलक्ष्मणसूरीश्वरजी म.सा. को विनति कर घर पर पगले करवाओ और उनके आशीर्वाद मिले तो जरूर इस बीमारी से राहत मिलेगी।" पू. पिताजी साधु-संतों के विशेष परिचय में न होने के कारण और उस विषय में संपूर्ण श्रद्धा नहीं होने के कारण उनकी अनुमति मांगी। उन्होंने किसी पुण्य से आनन्दपूर्वक सम्मति दे दी। मैं के. के. शाह के साथ पू. आचार्य भगवंत से मिला और उन्हें घर पर पगले करने की विनति की। पू. कीर्तिचन्द्रविजयजी म.सा. ने कहा कि, "ऐसे तो म.सा. किसी के घर पर पगले करने नहीं जाते हैं। हम दूसरे किसी संत को भेजते हैं।" किंतु पू. आ. श्री को विनति करते ही उन्होंने तुरंत सम्मति दर्शायी और पू. कीर्तिविजयजी म. सा. को कहा कि, "मुझे इनके घर जाने की विशेष जरूरत है।" दूसरे दिन सुबह जल्दी पू. आ.भ. घर पधारे। पिताजी को पूछा, 'क्या करमशीभाई ! ज्यादा तकलीफ है?" पिताजी ने गर्दन हिलाकर 'हाँ' का इशारा किया। पू. श्री ने कहा " सभी साथ में मांगलिक सुनो।" मांगलिक सुनने के बाद पिताजी ने -"पू.आ.भ. का गुरुपुजन करना है तथा कुछ वहोराना है। अंतिम समय है, इसलिए लाभ लेना है" ऐसी भावना व्यक्त कर गुरुपूजन करके पछेड़ी बहोरायी। पूज्य श्री ने कुछ अभिग्रह लेने को कहा। पिताजी ने कहा कि, " अभिग्रह लेकर पहले भी पाल नहीं सका। इसलिए इस हेतु आग्रह मत करो। " पू. श्री ने
44
222