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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
कहा कि, "मेरा अभिग्रह पाल सकें ऐसा होगा, किंतु वह तुम्हारी अंतर की इच्छा से लेना होगा । " और पूज्य श्री ने पिताजी पाल सकें ऐसे ही अभिग्रह का सूचन किया । " चौबीस घंटों में केवल एक नवकार मंत्र का जाप !" वासक्षेप डालकर पूज्य श्री ने नवकार मंत्र प्रदान किया। पिताजी को बहुत ही आनन्द हुआ।
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हम प्रतिदिन पूज्य श्री के विहार स्थल पर जाकर वासक्षेप ले आते ओर उनकी सूचना के अनुसार सुबह थोड़ा वासक्षेप सिर पर और थोड़ा वासक्षेप जीभ पर रखते। अंत में उनका विहार सोलापुर की ओर हुआ तब उन्होंने कहा, 'श्रावक को पूछना, नवकार गिनते हैं ना?" पिताजी को बताने पर उन्होंने कहा, "केवल सोने का समय छोड़कर बाकी के समय मेरे मन के भीतर नवकार का रटन चालु रहता है।" ऐसा कहकर उनकी आंखों में हर्ष के आँसु आ गए। पूज्य श्री को बताने पर उन्होंने कहा
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'अब मुंब्रा मुकाम पर चांदी की डिब्बी ले आना।" उसके अनुसार मुंब्रा जाते समय इन्होंने चांदी की डिब्बी में वासक्षेप दिया। हम जिसका उपयोग उनकी सूचना के अनुसार करने लगे ।
पिताजी की मानसिक शातिं में उत्तरोत्तर वृद्धि होने लगी। वे खूब श्रद्धापूर्वक सुबह धार्मिक वांचन सुनने लगे। अपना अंतिम समय नजदीक जानकर दि. 12.4.70 रविवार को दोपहर लगभग 4 बजे अंगूठी, चांदी का कंदोरा तथा घड़ी उतार देने को कहा, जो वे बहुत वर्षों से पहनते थे । उन्होंने नीचे सोने की इच्छा जताई। जो बैठ भी नहीं सकते थे वो एकदम होश में पैर लम्बे कर सो सके। उन्होंने रात्रि में बराबर 10-10 बजे समाधिपूर्वक देह त्याग दिया। उनके अंत तक नवकार मंत्र का रटन चालु था। उनकी घड़ी तकिये के पास रखी हुई थी। जो बराबर 10 बजकर 10 मिनट पर बन्द हो गई थी। जड़ और चेतन का यह कैसा अजीब संयोग ! और पूज्य श्री द्वारा दिया गया वासक्षेप भी पूर्ण हो गया था !
दूसरे दिन सुबह अंतिम क्रिया करनी है, यह खबर बाजार में फैलते ही श्री वेलजी भाई मोरारजी की धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मीबेन ने कहा कि
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