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• जिसक दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
नहीं आने वाली है। ऐसी गुरु आज्ञा शिरोमान्य रखी है।
आशा है कि, हम जिन पुत्री - जवाई से दस वर्ष से नहीं मिले हैं वह अब नवकार की आराधना से जरूर मिल जायेंगे ।
लेखक गीताबेन कस्तुरभाई सोलंकी
वालकेश्वर, मुम्बई
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नमस्कार - समो मंत्रः, न भूतो न भविष्यति "
पूर्व के किसी महान पुण्योदय से संस्कारी धर्मप्रेमी जैन परिवार में जन्म मिलने से बड़ों की प्रेरणा से प्रतिदिन रात को सोते समय 3 नवकार तथा यात्रा प्रवास या अन्य मांगलिक अवसरों में 3 नवकार गिनकर कार्य प्रारंभ करने के संस्कार छोटी उम्र से ही संचित हो गये थे। पांचवी कक्षा में पढ़ते समय शिक्षक ने प्रत्येक जैन विद्यार्थी को प्रतिदिन सवेरे सात नवकार और जैनेतर विद्यार्थियों को ईष्ट देव का स्मरण करने का नियम दिया था। उसे आज 62 वर्ष हो गये हैं, नियमित पालन होता है। मैं स्कूल व - कॉलेज की परिक्षाओं में भी नवकार गिनकर उत्तर लिखना प्रारंभ करता और अच्छे अंक प्राप्त करता। परिणामस्वरूप मेरी नवकार के प्रति श्रद्धा उत्तरोत्तर बढ़ती गयी है। बीस वर्ष पूर्व मुझे एक सुन्दर स्वप्न आया वह पू. आ. श्री विजयलक्ष्मणसूरिजी को बताते उन्होंने मुझे रोज नवकार मंत्र की एक माला गिनने की प्रेरणा दी। जो में प्रतिदिन गिनता हूँ। सं. 2024 में पू. मुनि श्री तत्त्वानन्दविजयजी म.सा. की प्रेरणा से नौ लाख जाप शुरू किया और अनुक्रम से पूरा किया।
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इस प्रकार नवकार मंत्र की आराधना से कई लाभ हुए हैं, अनुभव हुए हैं। उनमें से दो प्रसंग वाचक वर्ग की श्रद्धा वृद्धि के प्रयोजन से यहां संक्षेप में पेश करता हूँ ।
62-63 वर्ष पूर्व पू. माता-पिता तथा छोटे भाइयों के साथ सिद्धाचलजी की यात्रा करने के बाद वरतेज से तांगे द्वारा श्री नवखण्डा
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