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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - हिम्मत कर आठों ही दिन के अट्ठाई का पच्चक्खाण ले आये। उन्होंने कहा, "मैं जन्म से वैष्णव हूँ। केवल नवकार मंत्र ही आता है।"
साहेब ने कहा, 'कि कोई आपत्ति नहीं है। दोनों समय वह उनके साथ प्रतिक्रमण करते। व्याख्यान वगैरह सुनने से, हमेशा की 60 सीगरेट पीते थे, वे छोड़ दीं। जिससे गुरुजी और श्रावक का मेल-मिलाप बढ़ गया। दूसरे दिन फिर हम दोनों गुरुजी के पास गये। उन्होंने हमें खूब समझाया और मुझे सवालाख नवकार मंत्र गिनने को कहा। उसके अलावा एक द्रव्य का आयम्बिल कर अंतराय कर्म निवारण पूजा पढ़ायी। उस दौरान 11 महापूजन थे। उसमें भी सेवा-पूजा व्याख्यान के बाद मुझे ही स्नात्र पढ़ाने का था। एक ही स्थान पर श्रद्धा से सभी पूजन करवाये। वैसे प्रतिदिन मैं और वह 10 मालाएँ एक ही स्थान पर आदीश्वर दादा की तस्वीर के सामने, धूप-दीप कर गिनते थे। अमेरिका से फोन से समाचार मिलते, उस अनुसार साहेब को बताते। उनका वासक्षेप अमरीका भेजते। |वैसे ही उल्टे नवकार एवं भक्तामर की निश्चित गाथा वगैरह सभी पुत्री एवं जवाई के नाम से बोलते। धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य में सुधार होता गया। दोनों बच गये।
जवांई कोमा में से बाहर आये, किन्तु यादशक्ति नहीं रही। अभी नवकार का जाप पूरा नहीं हुआ था, किन्तु मेरी श्रद्धा बढ़ती गयी, आत्मविश्वास बढ़ता गया। उससे दूसरा कुछ नहीं करते हुए हम दोनों जन रोज का कार्य निबटाकर केवल नवकार का ही स्मरण करते।
उनको बड़ा ऑपरेशन करवाना पड़ा, किन्तु वह पूर्ण सफल हुआ। हम साधारण परिवार से थे, उस कारण उनके पास तो नहीं जा सके। यह सब सफर गुरुजी के मार्गदर्शन से काटा। वह कहते कि, 'बहिन, केवल कर्म मत बढ़ाओ, काम करो।'
. गुरुजी ने मुझे कहा,"तुम्हारे कारण ही कस्तुरभाई को जैन धर्म प्राप्त हुआ है और तुम्हारे से भी ज्यादा आस्था से मेरे समक्ष आये हैं।" आज भी हम हमेशा नवकार की पाँच पक्की माला गिनते ही हैं। उसमें कमी
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