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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? के हदय को लगा कि-" हिन्द का युवान, यशस्वी कार्य करने वाला डॉ. यदि मृत्यु शैय्या पर हो और अस्पताल में स्थान के अभाव में इलाज न मिलने के कारण मृत्यु की शरण में चला जाए, उसमें मेरे देश की कीर्ति कितनी कलंकित होगी।" उन्होंने तुरंत ही लिखित आज्ञा दी।
इस प्रकार 6 फरवरी सोमवार को रोग बढ़ा। मंगलवार खून-एक्सरे आदि की जाँच में गया। बुधवार को डॉ. खान ने बारह बजे गोली दी। दोपहर को रिएक्शन हुआ और शाम को लंदन के सबसे बड़े अस्पताल में प्रधानमंत्री के स्पेशियल कमरे में, जहां मनष्य के जीने की इच्छा को संतोष देने के लिए अत्याधुनिक साधन तैयार थे, मैं वहां भर्ती हुआ।
पुण्य के जोर से, श्रीमंत मनुष्य तो क्या? सत्ताधीश को भी तुरंत नहीं मिले वैसे सुन्दर अस्पताल के स्पेशियल कमरे में आया। किंतु अब उपचार का क्या? फिर वापिस पापकर्म बाधक बना।
लंदन के अच्छे से अच्छे डॉक्टरों की कोन्फ्रेंस हुई। कमर में हो रहे दर्द की गंभीरता ने सभी को चकित कर दिया। गंभीरतापूर्वक संपूर्ण सावधानी के साथ, सभी की संमतिपूर्वक स्पष्ट निदान हुआ और उसके निवारण के लिए तत्काल सर्जरी ऑपरेशन की बात पर सभी ने भार दिया।
सभी को यह लगा कि रोग का स्वरूप ऐसी कक्षा तक पहुँच गया है, कि अंदर भंयकर सड़न-मवाद (रसी) बनने की शुरूआत हो गयी थी, जिससे अल्प समय में मृत्यु नजदीक होने का डॉक्टरों को अंदेशा लगा। तात्कालिक ऑपरेशन से शायद बच जाए, किंतु कमर के नीचे का भाग पेरेलाइसिस (लकवा) की तरह शून्य निष्क्रिय हो सकता है। ऐसा अभिप्राय होने के बावजूद तात्कालिक भारी दवाई की खुराक से इलाज शुरु किया। पुनः डॉक्टरों की बैठक हुई, घंटे-घंटे की रिपोर्ट पर पुनः विचार होने लगे, मेरी वेदना का पार नहीं था। मैं जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने लगा और घंटे-घंटे में मोर्फीया के इन्जेक्शन द्वारा राहत देने का प्रयास हाने लगा। दूसरों के भयंकर असाध्य रोगों का उपचार करने वाले, मेरे लिए ही आज
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