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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? कोई निश्चित दवा नहीं दिखती थी। लंदन के अच्छे M.D. डॉक्टरों की बुद्धि भी शून्य हो गई हो वैसे किंकर्तव्यमूढ़ बन गये। ऑपरेशन की बात भी अनिश्चित उपाय की तरह थी। फिर वह ऑपरेशन जोखमी भी था। | ऐसे सभी जटिल हालातों में भी धर्म की आराधना द्वारा मिले हुए ज्ञान-विवेकशक्ति के बल द्वारा श्राविका धैर्यपूर्वक मेरी परिचर्या करती थी! अंतिम स्थिति में पहुंचे हुए और वेदना से विह्वल पति की चिंताजनक |दशा, इंग्लैण्ड जैसी अनजान धरती, सगे-संबधी कोई नहीं, रूपये बहुत होने के बावजूद अंतरंग आश्वासन रूप कोई नहीं, यह सब होने के बावजूद मेरे हदय को आघात न लगे, इसके लिए चेहरे पर तनिक भी शोक-खेद की लकीर लाये बिना, हँसते चेहरे से श्राविका मुझे बारबार सांत्वना देती थी।
क्या करना? इस सोच में गुरुवार और शुक्रवार बीत गये। शुक्रवार को वेदना का पार नहीं। मेरे पैर में लकवे का असर होने लगा। | जीवन-मृत्यु का प्रश्न खड़ा हो गया। मेरी वेदना की स्थिति को नहीं देख सकने के कारण अंत में डॉक्टरों ने शुक्रवार की शाम को ऑपरशन का ही निर्णय किया। मुझे न्यूरो सर्जिकल सेंटर में ले जाया गया।
जिस समय मुख्य द्वार से एम्बूलेंस कार प्रविष्ट हुई, लगभग उसी समय न्यूरो सर्जिकल डिपार्टमेंट के सर्वोपरी ऑपरेशन के निष्णात डॉ. सर ज्योफ्री नाइट (DR. SIR. GEOFRY NIGHT) दो दिन के अवकाश में | पर्यटन के लिए पिछले दरवाजे से अपनी कार में लंदन से बाहर चले गये! रे कर्म! तेरी अकल कला! जीवन मरण के झूले में मैं वेदना से घबराकर जोखमी ऑपरेशन के लिए तैयार हुआ तो बड़े डॉक्टर ही गैरहाजिर!!! | कैसी पाप कर्म की लीला!!!
किंतु मेरे किसी अज्ञात पुण्य कर्म की रेखाओं के कारण विदश में भी खून का कोई संबंध न होने के बावजूद सीनियर न्यूरो सर्जन डॉ. निकलसन ने भाई से भी ज्यादा वात्सल्य से हिम्मत रखकर किसी न किसी उपाय की खोज में सर्जिकल डिपार्टमेंट के एसीस्टेन्ट डॉ. रीड को
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