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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
रही थी । दुर्घटना का दृश्य देखकर, जहाँ मैं पड़ा था, वहाँ आकर खड़ी रह गयी। साथ के मित्र ने पूरी बात की, और मुझे अपनी कार में बिठाकर पास के अस्पताल में ले जाने की विनति की। उन्होंने विनति स्वीकार की। कार में तीन भाई थे। सुरत से झघड़ीया यात्रा करने जा रहे थे। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया। रास्ते में नवकार, बृहत् शांति सुनायी। परम पूज्य गुरुदेव का स्मरण आया। हृदय से उनके दर्शन किये। मैं न बोल सकुं वैसी हालत में भी नवकार बोलने लगा।
वेदना विराम हुई । दुःख दूर हुआ। उतने में तो अंकलेश्वर आ गया। अस्पताल के पास छोड़कर, कार झघड़िया के रास्ते दौड़ने लगी।
अंकलेश्वर के डॉक्टर ने मुझे बहुत हिम्मत दी । योग्य दवाई दी। शरीर पर कुछ हिस्सों में भयंकर चोटें लगी थीं। श्री देव गुरु की कृपा से साथ वाले प्रोफेसर मित्र मुझे रात को अंकलेश्वर से भरूच होकर जम्बूसर छोड़ गये। मैंने परिवार में किसी को भी पता न चले, उस प्रकार रहने का प्रयत्न किया, जैसे कुछ हुआ ही न हो, वैसे सोने का प्रयास करने लगा । किन्तु दुःख जाग्रत था । शरीर चुगली खाता था। मुश्किल से सुबह हुई । जंबूसर के डॉक्टर की सेवा ली।
यह समाचार मुंबई मिलते ही परम स्नेही, सेवाभावी, साधर्मिक प्रेमी उपकारी सेठ श्री खीमजीभाई (बाबुभाई ) छेड़ा (कांडागरा वाले) जंबूसर दौड़ आये। उन्होंने मुंबई आने को कहा। थोड़े दिनों बाद मुबंई गये और खीमजी भाई की सावधानी भरी सार-संभाल के नीचे, बोम्बे होस्पीटल के डॉक्टरों की प्रेमभरी सेवा मिली। दवा मिली। नया जीवन मिला।
ऐसा है इस मंत्राधिराज नमस्कार महामंत्र का प्रभाव! अद्भुत और अनुपम ! उसकी अचिंत्य शक्ति सक्रिय बनकर, सभी घटनाओं के पीछे इस जीवन का रक्षण करती थी ।
महान् पुण्योदय से मिले हुए इस महामंत्र को हृदय में विराजमान करके अपने को मिला हुआ मानव जीवन सफल करना चाहिए। प्रत्येक श्वास में इसे याद करना चाहिए। इस मंत्र की महिमा अपरंपार है।
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