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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
के भीषण तांडव नृत्यों एवं खून-खराबे में से हम थोड़ी सी भी क्षति बिना सुरक्षित मुम्बई पहुंच गये। वहां जो देखा और अनुभव किया उसे याद करने से आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बचना वास्तव में असंभव था। किन्तु अन्तर की आरजु पूर्वक नवकार मंत्र के रटन के प्रताप से ही हम सब बाल-बाल बच सके थे।
लेखिका दमयंतीबेन प्रेमचन्द कापड़ीया, बान्दरा, मुम्बई
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पागलपन पलायन हुआ
बोड़ेली से विहार करते करते पू. राजेन्द्र मुनि आदि ठाणा तीन राजपारड़ी पधारे। जिस मकान में वे रुके थे, उस मकान का मालिक मर गया था और उसका लड़का पागल हो गया था। उनकी पत्नी ने बात की, इसलिए म. साहेब ने नवकार मंत्र का स्मरण करने को कहा। केवल बीस दिन में पागलपन चला गया। वह दुकान में बैठने लग गया।
महाराज श्री विहार करते हुए पालनपुर पधारे। वहां मुस्लिम भाई श्री अल्लारखा उस्मीन वोरा को महाराज श्री ने नवकार मंत्र दिया। उसके प्रभाव से घर में रहता सर्प चला गया। फिर एक रात को स्वप्न में देवी ने घर में गुप्त रहा हुआ धन बताया। वोरा भाई ने उस जगह में से धन निकालकर (चान्दी के पांच सौ सिक्के) उन सिक्कों को म.सा. के पास लाये। उन्होंने म. सा. को उसे स्वीकार करने को कहा। महाराज श्री ने कहा
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'धन का स्पर्श भी हमारे से नहीं होता। हमारा आजीवन धन का त्याग होता है।" फिर महाराज श्री ने कहा कि, " तुम योग्य लगे वैसे, इस लक्ष्मी का सदुपयोग करो। " इसलिए उसने आधी रकम जीवदया के लिए उपाश्रय में दे दी और फिर वह हमेशा नवकार मंत्र का स्मरण करने लगा तथा उसने आजीवन मांसाहार, शराब, परस्त्री, वैश्यागमन, शिकार और कंदमूल ( ज़मींकन्द) के त्याग का संकल्प किया।
लेखक : पू. राजेन्द्र मुनि महाराज साहेब की ओर से, हेमन्तकुमार प्रवीणचन्द्र पटेल, पीज, तहसील - नड़ियाद
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