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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - से उसका स्मरण करने की!
___ लेखिका :सा.श्रीअमृतश्रीजी(पार्श्वचन्द्रगच्छ) 'नवकार मेरा मित्र है। __ मैं अपने पीहर में बाजरे की रोटी बना रही थी, तब हाथ की हीरे की अंगूठी में आटा न घुस जाए इसलिए निकालकर पैर की अंगुली में डाल दी। अचानक फोन की घंटी बजते मैंने फोन लिया। फोन पड़ोसी का होने के कारण मैं उसे बुलाने गयी। उस समय के दौरान मैं अंगूठी के बारे में बेट यान थी। मुझे दोपहर में अचानक ध्यान आया। अंगूठी कहाँ? सभी कमरों में से झाडु निकल गया था। मुझे डर लगा, क्योंकि अंगूठी मेरे ससुराल वालों की थी। ससुराल जाकर क्या जवाब दूंगी? बस मुझे नवकार याद आया और नवकार गिनने बैठ गई। पाटले पर बैठकर जमीन पर हाथ टेका और मेरे आश्चर्य के बीच अंगूठी मेरे हाथ के नीचे ही थी।
मैं एक बार माता-पिता के साथ केसरियाजी-शंखेश्वर यात्रा के लिए गई थी। पिताजी के कहने से नवकार का जाप हमेशा चालु रखती। रास्ते में सामने से आयी बस के कुछ आदमियों ने गाड़ी रोककर बताया कि, 'आगे भालाधारी आदिवासी हैं। आगे मत जाना। किन्तु जहां थे वहां भी भयंकर जंगल का क्षेत्र था। रात के नौ बजे थे। इसलिए दूसरा रास्ता नहीं होने के कारण आगे बढ़ने पर मिली हुई चेतावनी के अनुसार दोनों
ओर दो-दो भालाधारी और रास्ते में बड़े बड़े पत्थरों का ढेर देखने को मिला। फिर भी नवकार मंत्र की कृपा से, कुशल ड्राईवर साइड में से तेज गति से निकल गया। सभी आबाद बच गये।
हम ई.स. 1984 में 'संभव जिन महिला मंडल' के तत्त्वावधान में इन्दौर, नागपुर, मक्षीजी आदि स्थानों के प्रवास पर गये। दि. 30 अक्टूबर को प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी की हत्या के भयंकर दंगे हुए और हम भी दंगों में फंस गये। मौत या प्राणघातक संकट में मनुष्य पागल बनकर प्रभु को याद करता है। उस पागल प्रभुभक्ति की अंतर की पुकार से उस आग
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