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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? और विश्वास के त्रिवेणी संगम पर खड़ा होकर वह नया इतिहास रच सके। आकाश के महासागर में सफर करती सूर्य की नौका सागर-किनारे आ रही थी। झिलमिल होंती सूर्य की रश्मि करीब अस्त होने जा रही थी। संध्या आकाश के आंगन में इन्द्रधनुषी रंगों की रंगोली बना रही थी।
विराट बैठा-बैठा पलायन करने की योजना बना रहा था। इस अंधेरी पल्ली में आये आज उसे तीन दिन बीत चुके थे। इस तीन दिनों में विराट ने पल्ली की समस्त कार्यवाही का सूक्ष्म निरीक्षण कर लिया था। सरदार किस प्रकार बाहर जाता है, बाहर जाने के लिए वह कौन सी कीमीया से द्वारोद्घाटन करता है और किस समय. वह बाहर जाता है, इन सभी बातों से विराट पूरा वाकिफ बन गया था। और इस पूरी जानकारी के आधार पर ही वह अपनी योजना का निर्माण कर रहा था।
पूरी पल्ली निद्रा की गोद में सो जाने की तैयारी कर रही थी, तब विराट भी अपनी शैय्या में लेट गया, उसको अपनी योजना को पूरी करने हेतु पैर भरने थे।
वह महामंत्र का स्मरण करते-करते समय व्यतीत कर रहा था। मध्यरात्रि में विराट उठ बैठा। उसने आसपास एक उड़ती नजर फेंकी तो सब जगह सुनसुनाहट थी। पूरी पल्ली भर नीन्द में थी, सरदार भी घोर निद्रा में था।
विराट ने मन ही मन विचार किया, "मौका सुन्दर है! मेरे मार्ग में रुकावट आये, ऐसा कुछ नहीं है। वह उठा और द्वार की तरफ आगे बढ़ा।
विराट के मन में दुबारा कमजोरी का विचार आंदोलित हो गया. 'क्या मैं यह गलत साहस तो नहीं कर रहा हूँ। योजना यदि पकड़ी गयी तो मेरा आखरी अंजाम मौत के अलावा क्या हो सकता है?' उसके शरीर में भय से कंपकंपी छूट गयी!!! किंतु वह जवांमर्द बन गया। जब महामंत्र | रक्षक बनता है, तब आपत्ति का धुंआ गायब हो जाता है और
सफलता का सूर्य प्रकाशमान हो उठता है। विराट ने महामंत्र का स्मरण |किया! आदिनाथ दादा को दिल में धारण किया और उस कंटक भरे मार्ग
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