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जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? सरदार के प्रयत्न सरेआम निष्फल हुए। उन्होंने बहुत प्रयास किए, | परन्तु विराट के मुंह के चबूतरे पर हास्य का एकाध कबूतर भी दाना चुगने नहीं आया!
विराट पुनः विचारों की दुनियां मे उतर गया, 'जब महामंत्र रक्षक बनता है, तब विपत्तियों के अडिग पहाड़ भी हिल जाते हैं, और इन पर्वतों में विराट दरारें आ जाती हैं!'
विराट की विचारधारा आगे बढ़ी। 'क्या महामंत्र मेरा रक्षक नहीं? किसकी ताकत है कि मंत्राधिराज मेरे पास हो और मेरा बाल भी बांका कर सके? जगत् के विराट तख्त पर ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो इस मंत्राधिराज के सामने टक्कर झेल सके? तो क्या मैं भी महामंत्र को मेरा रक्षक बनाकर और नमस्कार का अभेद्य कवच धारण करके यहां से किसी भी प्रकार से भाग जाने के कार्य में साहस करके आगे बढुं, तो | मेरा कार्य कामयाब नहीं होगा? जरुर कामयाब होगा।'
विराट के अंतर में से एक विराट प्रतिध्वनि बाहर निकली और विराट की अंतर गुफा में वह प्रतिध्वनि गुंजने लगी। इस प्रतिध्वनि ने विराट को नया जोश दिया, नयी जवांमर्दी प्रदान की! उसका दिल किसी | भी प्रकार से अब पल्ली को छोड़ देने हेतु कटिबद्ध बना और अन्त में दृढ़ निश्चयी बना कि, आज तो जरुर इस पल्ली को ठोकर से उड़ाकर चल ही निकलना है तय किये हुए सिद्धाचल की राह पर...! विराट की विचारमाला रुकी। वह किसी भी प्रकार से पल्ली में से भाग निकलकर सोरठ के अलबेले "दादा' को मिलने हेतु दृढ़-निश्चयी बना। विराट को श्रद्धा थी, कि अपने इस महाभारत कार्य को पूरा करने के लिए मंत्राधिराज अवश्य सहायता करेंगे। उसे विश्वास था कि महामंत्र उसमें ऐसा पीठबल भरेगा कि, जिस पीठबल से वह विघ्नों के विराट वारिधि को लांघकर भी अपनी मंजिल को हासिल कर लेगा।
विराट में आज शौर्य फूट पड़ा। उसमें आज एक ऐसी जवामर्दी, एक ऐसा जोश, एक ऐसा विश्वास उत्पन्न हो गया था कि जोश, जवांमर्दी