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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मन्त्राधिराज का स्मरण करते-करते विराट सुख शैय्या में लेट रहा था, किन्तु इसकी आंखों में नींद नहीं थी।
काली काली मध्यरात्रि । बस्ती का सुना वातावरण । धरती के अज्ञात कोने में अकेली बस्ती । और इस पूरे पराये वातावरण के बीच स्वयं अकेला!
विराट की आंखों के आगे यह पूरा दृश्य चित्रपट की तरह आगे बढता और उसका हृदय हिल उठता।
धरती पर फैले हुए अंधकार का काला पर्दा धीरे-धीरे दूर हो रहा था और सफेद-सफेद तेज कण आकर धरती को प्रकाशित कर रहे थे। विराट सेज में से बैठ गया। उसने मंत्राधिराज के चरणों में घुटने टेककर प्रणाम किया और वह सिद्धाचल की सुन्दर मूर्ति को मनोमन वन्दना कर
रहा था।
पुनः सरदार के वही प्रयत्न! वही स्नेहयुक्त विनतियां। फिर भी विराट नहीं माना ! उसके मुंह पर फैले विषाद के बादल नहीं ही बिखरे !!!
इस तरह एक दो और तीन दिन बीत गये ! विराट की याददाश्त में जब सिद्धाचल के संस्मरण उमड़ आते तब उसका वियोगी दिल उसके मिलन के लिए रो पड़ता। जब इस प्रकार चारों ओर से आयी विपत्ति की जंजाल विराट का मन फंस जाता, तब वह दौड़ जाता मंत्र सम्राट की शरण में। मंत्र सम्राट की शरणागति से वह आश्वासन का अनुभव करता था !
विराट फिर एक बार विचारों के गहरे समुद्र में कूद पड़ा। 'क्या अब इन विराट जंजीरों को तोड़कर भाग जाना असंभव बात है? क्या भगवान आदिनाथ के पास दिल की दो-चार बातें करने का मेरा ख्वाब खाक होकर उड़ जायेगा? नहीं नहीं, अभी भी जो में मेरे मन को मर्द बनाऊ, मेरे जीवन में युवाशक्ति का जोरदार प्रवाह बहाऊं, तो मेरा यह ख्वाब सिद्ध हो जायेगा। मेरे सोचे हुए अरमान आकार प्राप्त कर सकेंगे।' विराट का विचार प्रवाह रुका और उसने सामने देखा तो सरदार उसके सामने खड़े थे और रिझाने के प्रयत्न कर रहे थे।
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