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- जिसके दिल में श्री नवकार, ठसे करेगा क्या संसार? पहाड़ी के किनारे-किनारे चलने के बाद एक पगडंडी अलग होती थी। इस पगडंडी के आमने-सामने हरा घास खड़ा-खड़ा डोल रहा था।
उन्होंने पगडंडी पर चलना आरंभ किया, उनके पीछे विराट भी आ रहा था। समूह तो निर्भय बनकर चल रहा था। लेकिन विराट तो अभी नया था, इसलिए वह भय के साथ महामंत्र के जपपूर्वक आगे बढ़ रहा था। वह समूह एवं विराट पगडण्डी पर चलते-चलते एक गहरी पल्ली (बस्ती) के पास आ पहुंचे और अन्दर प्रवेश किया, तब चारों ओर अंधेरा था।
"मंत्र, तंत्र और यंत्र में ऐसी शक्ति छिपी हुई होती है कि, जिसके सहारे अघटित भी घटित हो जाता है। स्वप्न में भी कल्पना न कर सकें, ऐसी वस्तुएं साकार होकर सामने खड़ी हो जाती हैं।
विराट के जीवन में भी ऐसा ही कुछ बना था, इसी कारण तो विसनगर से शत्रुजय जाने के लिए निकला हुआ विराट एक अंधेरी बस्ती में पहुंच गया। वह जिस डिब्बे में बैठा था, उसमें एक लटेरों का समूह भी था। उस लूटेरों ने ही विराट पर वशीकरण किया था।
विराट का रूप-रंग और कोमल वय देखकर उस समूह ने एक ऐसी आकर्षण विद्या विराट पर डाली कि, जिससे विराट को उसकी ओर स्वतः आकर्षण उत्पन्न हो और अपने मन की इच्छा फले। इस लूटेरों के अरमान वास्तव में फलीभूत हुए भी सही। विराट पर छोड़ी गयी इस आकर्षण विद्या ने अचूक कार्य किया और विराट लूटेरों की बस्ती की तरफ खींचा हुआ आया।
सरदार को विराट की आवश्यकता थी, इसलिए उसने विराट को मनाने हेतु उसके चरणों में सुख-सामग्री भेंट करने का निर्णय किया। मखमल की सेज पर विराट को सुलाया गया। अलग-अलग खाद्य सामग्री इसके आगे रखी गयी। किन्तु विराट भक्त था महामंत्र का, उपासक था, जैन शासन का! वह रात को कैसे खाये? दिनभर के चलने की थकान थी! आंखों में नींद नहीं थी, फिर भी विराट सेज पर सो गया।
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