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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
रहा था !!
इस प्रकार नमस्कार मंत्र का रटन करते-करते विराट आगे बढ़ रहा था। समूह एवं विराट में अब ज्यादा फासला नहीं था, वह थोड़ा चला और दूर- सुदूर नजर डाली तो वह समूह रुक गया और वह बातों की महेफिल में मशगूल बना था।
बातों में मशगूल बने समूह में से एक आदमी ने पीछे नजर की तो उसे विराट अपने पीछे आता दिखाई दिया। उसने अपने सरदार से कहा, 'सरदार ! देखो कोई छोटा बालक आता दिखाई दे रहा है! कैसा सुन्दर है!' "हाँ, हाँ, देखो, उस वृक्ष के नीचे से गुजर रहा है ! उसके मुंह पर फैला तेज कैसा मोहक है ! गौर वर्ण ! उसका तन बदन भी कैसा सुरेख एवं सुदृढ़ है। अभी उम्र तो छोटी लगती है, फिर भी उसके मुख पर फैले गांभीर्य का गुण कैसा भव्य लगता है।" लड़के का आकर्षक शरीर देखकर सरदार भी बोल उठा। समूह थोड़ी देर वहां खड़ा रहा, उतने में विराट उनके पास आ गया। समूह के सरदार ने विराट से बात करने के लिए बहुत प्रयत्न किया, किन्तु विराट नहीं बोला, वह तो महामंत्र के जप में लीन बन गया था। विराट शत्रुंजय पर स्थित मन्दिरों के मानसिक दर्शन में लीन हो गया था। अन्त में समूह का सरदार थका और उसने आगे बढ़ने की आज्ञा दी। विराट भी उनके पीछे-पीछे हो गया। समूह आगे बढ़ता जा रहा था। सूर्य अस्त हो गया था । आकाश में उभरे हुए अंधकार के बादल अब अंधकार - जल बरसाने लग गये थे। धरती पर थोड़ा-थोड़ा अंधकार फैल रहा था।
प्रकाश एवं अंधकार में समूह रास्ता काट रहा था। उसके पीछे विराट भी खिंचा जा रहा था। वे अब एक गहरे जंगल को पारकर खुले मैदान में आ गये थे।
एक छोटी सी पहाड़ी के किनारे-किनारे चलने के बाद उस जनसमूह के रहने का स्थान आता था और अंधेरा भी अब गहरा होने से सबने चलने की गति बढायी ।
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