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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
मैंने श्राविका को 47 दिन का उपधान करवाकर प्रथम माला पहनाकर जीवनोपकारिणी श्राविका के उपकार का यत्किंचित् ऋण अदा किया।
वक्तव्य:- डॉ. सुरेशभाई सोभागचन्दजी झवेरी 301 अर्थ एपार्टमेन्ट, पार्श्वनगर, कॉम्पलेक्स,
472949
कैलाशनगर, सगरामपुरा - सुरत 395002 (गुजरात) दूरभाष
वैर विसर्जक, मैत्री सर्जक श्री नवकार
यहां पेश की गई रोमांचक, बोधप्रद घटना एक मासिक में पढ़ी थी। उसे सं. 2041 के मुम्बई- वडाला चार्तुमास के दौरान व्याख्यान में पेश करने पर एक श्रावक से जानने को मिला कि इस घटना से जुड़े तत्वचिन्तक भाई दूसरे कोई नहीं, परन्तु वर्षों से गोड़ीजी (पायधुनी) में हर शनिवार को जिनका आध्यात्मिक वार्तालाप आयोजित होता है, वे श्री किरणभाई स्वयं हैं। उसके बाद किरण भाई के पास प्रत्यक्ष में इस घटना का आलेखन करने का निवेदन किया, परन्तु कुछ कारणों से उन्होंने अनिच्छा दर्शायी। फिर भी यह घटना अनेक आत्माओं के लिए अत्यंत प्रेरणादायक होने से उसका सारांश यहां अपनी यथामति से पेश कर रहा हूँ। उसमे अपूर्ण दशा के कारण कोई क्षति हो तो हार्दिक मिच्छामि दुक्कड़ - संपादक
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शंखेश्वर तीर्थ में नमस्कार महामंत्र के परम आराधक, अध्यात्मयोगी, अजातशत्रु प. पू. पंन्यास प्रवर श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. आदि पूज्यों की निश्रा में एक त्रिदिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसमें तीसरे दिन की रात में नवकार के बारे में एक प्रश्नोत्तरी आयोजित की गई थी। मुझे विविध जिज्ञासुओं के प्रश्नों के प्रत्युत्तर देने थे।
रात्रि में लगभग 11 बजे प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम पूर्ण होते ही सभा का विसर्जन हुआ। सभी श्रोता अपने-अपने स्थान पर गये, परन्तु एक भाई वहां बैठे थे। सभा के व्यवस्थापक ने उनसे पूछा : 'तुम्हें अभी कुछ पूछना है' यह सुनते ही वह भाई कुछ आवेश में आकर कहने लगे। "मेरे को कुछ भी नहीं पूछना, परन्तु केवल इतना ही कहना है कि, मेहरबानी
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