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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मांगलिक सुनाया। पूज्य गुरुदेव की संयमित काय चेष्टा, जयणापूर्वक (सावधानीपूर्वक) चलने की पद्धति आदि की अमिट छाप मेरे हदय पर
पड़ी।
उसके बाद रविवार को व्याख्यान सुनने गया। पूज्य गुणविजयजी महाराज (तपस्वी) की प्रेरणा से मैंने गुरुवार को अस्पताल बंद कर सप्ताह में दो दिन (रवि-गुरु) नियमित व्याख्यान सुनना प्रारंभ किया।
विनयविजयजी महाराज की सुंदर शास्त्रानुसारी व्याख्यान शैली, महापुरूषों के सुंदर जीवन चरित्रों के प्रसंगों को अच्छी तरह से पेश करने की कला, पूज्य गुणविजयजी महाराज की धर्म कार्यों से संबंधित विविध सूचनाएँ, घर में श्राविका की हार्दिक प्रेरणा और उसका धार्मिक साथ लेकर सर्वप्रथम श्री शामला पार्श्वनाथ प्रभुजी की अट्ठम से मेरे धार्मिक जीवन की शुरुआत हुई।
उसके बाद उत्तरोत्तर अनेक त्यागी, तपस्वी साधु भगंवतों, आचार्यों, पदस्थ मुनियों आदि के धार्मिक परिचय-धार्मिक वातावरण आदि के प्रताप से यथाशक्ति व्रत-नियम, तप-जप, पौषध, प्रतिक्रमण आदि धर्म क्रियाओं से जीवन धन्य-पावन बन गया।
पैसे कमाने की दृष्टि से कलकत्ता की भूमि अनुकूल होने के बाद भी, धार्मिक वातावरण और संयमी जीवन बिताकर धार्मिक अपूर्व प्रेरणा देनेवाले मुनियों के सहवास की कमी के कारण, श्राविका की प्रेरणा से ई.स. 1971 में कलकत्ता छोड़कर हम अहमदाबाद आ गये।
यहाँ आने के बाद धार्मिक जीवन में मेरी सुंदर प्रगति हुई। मैंने श्री वर्धमान तप की 31 ओलियां की। पूज्य शासन प्रभावक आचार्य देव श्री देवेन्द्रसागरसूरिजी की प्रेरणा-निश्रा में परमानंद जैन संघ (वीतराग सोसायटी, पालडी, अहमदाबाद-1) की ओर से हुए उपधान प्रसंग पर महान पुण्य के योग से श्री नमस्कार महामंत्र की आराधना विधिपूर्वक अढारिया (पहला उपधान) करने से आराधने (साधने) का सौभाग्य मिला।
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