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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हदय को दुःख हुआ फिर भी उनके असीम उपकारों के बदले में भाव से दादाजी के पैर धोकर उस चरणामृत को मस्तिष्क पर चढ़ाने की भावना द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित की। ___ मैंने धर्म-वात्सल्यमूर्ति, वास्तव में जीवनसंस्कारदात्री माताजी के चरणों में कृतज्ञता भरे आँसू बहाकर घटित बात संक्षेप में कही। - विशेष में-"आपके द्वारा दी गयी चंदन की माला से श्री नवकार के किये गये द्रव्य जप के प्रताप से ही अंत में मेरा उद्धार हुआ, इस सबका
श्रेय आपको है" इत्यादि कहकर मैंने माताजी की चरण रज सिर पर |चढ़ायी।
मैं बाद में व्यवसाय के कारण ई. स. 1964 में कलकत्ता आया। वहाँ डॉक्टरी कार्य प्रारंभ किया, पुण्य योग से लंदन की तरह यहाँ भी | भौतिक संपत्ति जरूरत से ज्यादा मिलने लगी। किंतु अब मेरी अन्तरात्मा जागृत होकर विकारी वासनाओं के दबाव से मुक्त रह सकी।
मुझे प्रबल पुण्योदय से मेरे एक जिगरी दोस्त ने एक बार प्रेरणा दी कि विनयविजयजी महाराज (स्व. पु.आ. श्री विजयभक्ति सूरीश्वरजी के शिष्य, वर्तमान में स्व. पू.आ. श्री विनयचंद्रसूरीश्वरजी महाराज) बहुत सुंदर व्याख्यान देते हैं, एक बार जरूर जाओ। मैं बार-बार दोस्त की प्रेरणा से एक रविवार को समय निकालकर व्याख्यान सुनने गया। पू. महाराजश्री की संयमलक्ष्मी से शोभायमान काया, प्रशांत चेहरा, मीठी मधुरी वाणी से मेरा मन आकर्षित हुआ।
फिर कभी जिनमंदिर में दर्शन करने के लिए पधारे हुए पूज्य श्री विनयविजयजी महाराज मंदिर में से बाहर निकले और मैं मेरे मित्र के साथ घूमने निकला था। किंतु छोटी उम्र में दादाजी की ओर से तथा धार्मिक पाठशाला में ऐसा शिक्षण मिला था कि जैन साधु भगवंत- प्रभु महावीर के त्याग धर्म का पालन करने वाले को देखकर तुरंत हाथ जोड़ने चाहिए। इस संस्कार के कारण मैंने जूते उतारकर उन्हें विनयपूर्वक नमस्कार किया। पूज्य गुरुदेव ने मधुर स्वर से धर्मलाभ कहा। मेरी विनति से
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