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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
परमशासनप्रभावक अचल- गच्छाधिपति प.पू. आ.भ. श्री. गुणसागरसुरीश्वरजी म.सा. के शिष्य मुनि श्री महोदयसागरजी के रूप में। घोषित हुए। (पूज्य श्री के लघुबंधु श्री दीपकमाई गाला को भी बचपन ।
से ही चारित्रका स्वीकार करने की भावना थी। फिर भी माता-पिता की । सेवा के लिए शादी न करते हुए ब्रह्मचर्यमय एवं प्रभुभक्ति आदि । आराधनामय अत्यन्त अनुमोदनीय जीवन जी रहे हैं।)।
दीक्षा के बाद 10 वर्ष तक व्याख्यान प्रवृत्ति में न पड़ने की। । आपकी भावना होते हुए भी गुरु आज्ञा को शिरोमान्य रखकर प्रथम चातुर्मास में ही कच्छ-बिदड़ा में गुरुनिश्रा में आपने लगातार चार महीने तक गुरुकृपा से सुन्दर शैलि में चातुर्मासिक प्रवचन दिये।
केवल चार वर्ष के दीक्षा पर्याय में गुरु आज्ञा से आपकी निश्रा । में सं. 2035 में 1000 यात्रिकों का 99 यात्रा का 100 दिन का। । आयोजन संघरत्न श्री श्यामजीभाई एवं मोरारजीभाई गाला- बंधु युगल । द्वारा आयोजित हुआ, जिसमें आपश्री ने केवल "नमो अरिहंताण" पद | पर ही सौ दिन तक प्रवचन दिये।
आपने सं. 2036-37 में केवल 13 महिनों में 45 जैन आगमों। का सांगोपांग अध्ययन गुरु आज्ञा लेकर किया। जब तक 45 आगमों का ।। अध्ययन पूर्ण न हो, तब तक सम्पूर्ण मिष्टान्न, फरसाण (नमकीन), फ्रूट, ।। एवं मेवे का त्याग एवं वस्त्र प्रक्षालन के लिए साबुन का भी त्याग । प्रतिज्ञापूर्वक किया।
सं. 2037 के चातुर्मास में 5 महिनों तक अखण्ड मौनपूर्वक नवकार महामंत्र की साधना कच्छ-कोटड़ा गांव में की।
आपकी प्रेरणा-निश्रा में नालासोपारा, डोंबीवली, जामनगर, 1. मांडवी, बड़ौदा इत्यादि स्थानों में लगातार 4 महिनों तक नवकार महामंत्र
का तालबद्ध रूप से अखण्ड भाष्य-जाप के भव्य आयोजन हुए हैं एवं । । करोड़ों की संख्या में सामूहिक जाप के आयोजन भी हुए हैं।
नालासोपारा (मुंबई) में आपकी प्रेरणा से
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