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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
"जिनालय-उपाश्रय-धार्मिक पाठशाला- ज्ञानभंडार एवं आयंबिल खाते की,
स्थापना हुई है। इसी तरह अहमदाबाद-नाराणपुरा में नूतन उपाश्रय का । निर्माण हुआ है। डोंबीवली-मणिनगर आदि में ज्ञानभंडार की स्थापना भी । हुई है एवं उदयपुर में आपकी प्रेरणा-निश्रा में इसी चातुर्मास के दौरान ॥ त्रि-मंजिले 'अचलगच्छ जैन भवन' का भूमिपूजन- खनन हुआ है। गुरु निश्रा में रहकर कई जगह अंजनशाला-प्रतिष्ठा महोत्सवों में भी आपने, अच्छा सहयोग दिया है।
गुरुआज्ञा से आपके वरद हाथ से अगल-अलग स्थानों में तीन आत्माओं की दीक्षा/बड़ी दीक्षा एवं योगोद्वहन के मांगलिक कार्य भी हुए
सं. 2045 में आपकी निश्रा में एक ही साल में चार । छरीपालक संघों का (जामनगर से गिरनारजी, जामनगर से दलतुंगी, राजकोट से पालीताणा एवं जामनगर से कच्छ-72 जिनालय) का भव्य , आयोजन हुआ था।
आपने गुरुदेवश्री की निश्रा में मुंबई से सम्मेतशिखरजी छरीपालक संघ में/सम्मेतशिखरजी के चातुर्मास में एवं सम्मेतशिखरजी: । से शत्रंजय महातीर्थ के छ'रीपालक संघ आदि में भी व्याख्यान के। । उपरान्त अनेक साधु-साध्वी भगवंतों को 6 कर्मग्रंथ-बृहत् संग्रहणी-क्षेत्र । समास-दशवकालिक सूत्रादि की वाचनाएं दी है। सम्मेतशिखरजी से, शत्रुजय के छ'रीपालक संघ में आप दि. 24-2-85 के दिन उदयपुर, भी पधारे थे।
पूज्यश्री ने 25 जितनी लोकोपयोगी पुस्तकादि साहित्य का, । सृजन किया है। (जिसकी सूचि इस किताब के अन्त में दी है।) जिनमें
से 'बहरत्ना वसुंधरा' भाग-1-2-3 (हिन्दी) का विमोचन इसी चातुर्मास । में हमारे श्रीसंघ में हुआ है एवं प्रस्तुत किताब की पूर्णाहुति भी हमारे ,
श्रीसंघ में इसी चातुर्मास में हुई है। आपने संस्कृत भाषा में भी शत्रुजय, , I: गिरनार आदि के अष्टक, छत्तीसी एवं शतक का सृजन भी किया है।
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