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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? प्रकट हो गया। पल दो पल में तो जैसे अशिष्टता में कुछ बाकी हो वैसे आगंतुक गुंडों में से एक ने गले में फंदा डाल दिया। परिणाम यह आया कि कुछ मूर्छितावस्था में ही मैंने नवकार का जाप दृढ़ कर दिया और मौत की कुशंका में एक मात्र शरण महामंत्र का ले लिया। क्षण में तो गले का फंदा भीषण बनने लगा, और मेरे हाथ में कुछ न रहा, सिर्फ गले की घोंट और प्राण बचाने एक हाथ से मजबूत फंदे को पकड़ लिया। जिसके कारण श्वासोच्छ्वास लेने-छोड़ने में कुछ कम तक़लीफ महसूस हुई। तब तक तो सब प्रक्रिया मौन थी। इसी वक्त एक ने कठोर स्वर में कहा कि, "पैसे देना है कि प्राण खोना है?"
सत्य हकीकत का पर्दाफाश हो गया। व्यवसाय संपूर्ण नीति का था। जिससे नकद सौ-दो सौ रूपये से ज्यादा राशि पाकिट में नहीं थी, किन्तु चैक द्वारा ही व्यावसायिक आदान-प्रदान होता था। मैंने गुंडों के प्रश्न का प्रत्युत्तर प्रदान करते हुए कहा कि, "मेरे पास नकद राशि नहीं है किन्तु सुबह में चैक लिखकर दे सकता हूं।" जवाब के इस वक्त नमस्कार मंत्र से वंचित रहा किन्तु शायद इसी के कारण गुंडों में से किसी एक को सद्बुद्धि उत्पन्न हुई।
जिसके कारण उसने गले में डाला फंदा शिथिल किया। परन्तु तब तक गले में लाल लकीर-सी रेखा दबाव-तनाव के कारण उत्पन्न हो गई थी। फिर भी उनकी अपेक्षा पूर्ण न होने से फिर एक ने मेरी पीठ पर चाकू से स्पर्श किया,दूसरे ने आवाज रोकने मुंह में कपड़ा ढूंसा और तीसरे ने मेरी ही कुर्सी से मेरे हाथ-पैर बांध देने की दुश्चेष्टा भी की।
अंजाम यह हुआ कि फिर मुसीबत और भयानकता की मिश्र संवेदना में मुख में नवकार जाप आने लगा किन्तु मेरी शारीरिक शक्तियाँ सीमित रह गई। ठीक ऐसी नाजुक क्षणों में चमत्कार हुआ.....
ऑफिस का दरवान अपने कार्य से कहीं बाहर था, उतने में मौके का लाभ लेकर इन बदमाशों ने पांच-दस हजार की लालच में ऐसा कुकर्म करने की हिम्मत की थी। आगे कुछ होवे इतने में ही तो वही
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