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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हाथ में लिया। जो धर्म के नाम से ही दूर-सुदूर रहना चाहता था, उसी मित्र ने शान्ति से, विचार पूर्वक पुस्तक का वांचन शुरु किया।
उसने पुस्तक का अक्षर-अक्षर पढ़ा। उसमें लिखा था "भव-भव के दुःख काटे" "परमातम (परमात्म) पद देता"। इन शब्दों को पढ़ते, उसके ऊपर का विवेचन पढ़ने से उसकी सोई हुई आत्मा जाग उठी। नाच उठी। सुषुप्त चैतन्य जागृत हो गया। महाप्रभाविक मंत्र जिसने अमर कुमार को "अमर" बनाया, सर्प की "फूलमाला' बन गई, रंक भिखारी को राजा |बना दिया, तो मेरा उद्धार नहीं होगा?
जो मंत्र, सभी काल में, सभी स्थानों पर प्रभावक रूप से प्रसिद्धि प्राप्त किया हुआ हो, वह मंत्र निश्चित ही मेरे लिए उत्तम औषधि है। सुखी होने का उपाय है।
पंजाबी ने मझे पछा - "मझे पस्तक दोगे? यह मंत्र में गिन सकता हूँ? इससे मेरे दुःख दूर होंगे?" मैंने कहा "मित्र! इसके लिए मुझे गुरुदेव की आज्ञा लेनी पड़ेगी।"
परन्तु मैं आगे कुछ नहीं बोला। मेरे मौन से मित्र को आश्चर्य हुआ। मित्र ने पूछा-"विनोद भाई! कैसे अटके?" मैंने कहा"मित्र! तेरे ऊपर मुझे दया आती है। मंत्र लेने के लिए कुछ करना पड़ेगा। कुछ देना पड़ेगा। कुछ छोड़ना पड़ेगा। तो तुम क्या करोगे? तेरा जीवन दूषित है। यह दूषण छोड़ने पड़ेंगे।
"मन को पवित्र किए बिना मंत्र नहीं साधा जा सकता। जीवन नहीं सुधरेगा तो तेरा उद्धार जगत् में नहीं होगा। बोल! यह सब तुझसे होगा? "मित्र ने कहा-विनोद भाई! मैं सभी छोड़ दूंगा। तुम कहोगे वैसा करुंगा। जैसे जीने के लिए कहोगे, वैसा जीवन जीऊंगा। ऐसे भी भूखा मरता हूँ, बेकार घुमता हूँ। धर्म की शरण में जाने से भूखा मरा तो भी मेरा कल्याण तो होगा। मेरा उद्धार तो होगा।" । दूसरे दिन सोने का सूर्योदय हुआ। मैं और मेरा मित्र उपाश्रय गये। पू. मुनिराज श्री जितेन्द्रविजयजी महाराज ने मित्र को मंत्र दिया। मित्र को
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