________________
-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - और कोई अशुभ विचार मन में नहीं आते हैं। अभी मेरे पिताश्री तो जीवित नहीं, किन्तु मैंने उनकी प्रणाली चालु रखी है। मैं प्रतिदिन सवेरे जब उठता हूँ, तब पहले तीन बार नवकार मंत्र बोलता हूँ, फिर गौतम स्वामी का छंद, सोलह सतियों का छंद तथा शंखेश्वर पार्श्वनाथ का छंद बोलता हूँ। इससे मेरा दिन सुधर जाता है। मन में अच्छे विचार आते हैं। मैं जब भी किसी मुश्किल में फंस जाता हूँ, तब शुद्ध भाव पूर्वक, सम्पूर्ण एकाग्रता से महामंत्र नवकार का जाप करता हूँ। मुझे नवकार मंत्र के प्रभाव से मुश्किलों में से कोई सरल मार्ग मिल जाता है। इतनी प्रारम्भिक प्रस्तावना के बाद मुझे स्वयं को नवकार के बार में जो अनुभव हुआ है वह बता रहा हूँ -
इस अनुभव को हुए लगभग बीस वर्ष हुए होंगे। तब मुझे गुलाबचन्दभाई जिनको नवकारमंत्र के प्रभाव से गले का कैन्सर मिट गया था, (इस पुस्तक में जिनका प्रथम दृष्टान्त है-सम्पा.) रेल में मिले और नवकार मंत्र के जाप से उनका कैन्सर किस प्रकार मिटा उसकी बात की।
मैं अपने व्यवसाय के कार्य हेतु घाटकोपर से मुम्बई रेल में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में जा रहा था। दोपहर का समय था, इसलिए मुझे बैठने की जगह मिल गई थी। धीरे-धीरे एक-एक स्टेशन आता गया और मैं अपने विचारों में था, कि कहाँ-कहाँ क्या-क्या कार्य निबटाने हैं। ऐसे दादर स्टेशन आ गया और रेल में से काफी यात्रिक उतर गये। उस दौरान दादर स्टेशन से दो लोग चढ़कर मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठे। उन दोनों के बाल एवं दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसमें से एक आदमी घूरघूर कर मेरे सामने देखने लगा। शुरूआत में मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया। किन्तु थोड़ी देर बाद मुझे चक्कर आने लगे और मुझे लगा कि मैं थोड़ी देर में गिर जाऊँगा। मुझे मन में ख्याल आ गया कि, "यह आदमी तांत्रिक लगता है और मेरे ऊपर त्राटक कर रहा है। अब इसमें से किस प्रकार बचना?" वहां थोड़ी देर में धर्म के प्रभाव से मेरे मन में विचार आया कि इसका इलाज तो मेरे पास ही है। मैं अचिंत्य चिंतामणि नवकार का जाप शुद्ध भाव तथा अपूर्व श्रद्धा से करने लगा। मैंने करीब सात नवकार
313