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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
अधिकार नहीं है।"
युरोपियन अब क्षोभित हुए। उन्होंने आश्चर्य अनुभव करते हुए कहा, " खीमजीभाई ! यह तो तुम दांव-पेच का खेल खेले! हमें ऐसा मालुम होता तो हम वचन से बंधे ही नहीं होते। तुम्हारी बात सच्ची, हम वचनबद्ध हैं, यही भी सही है। किंतु यह शिकार की मौज मनाने का मौका कभी कभी मिलता है, इसलिए अपने संबंध झारी रखने हो तो मेहरबानी करके अब दुबारा इस वचनबद्धता को स्मृति में मत लाना।"
खीमजीभाई ने मित्रों की इस चेतावनी की परवाह किये बिना ऐसे शौक को तिलांजली देने हेतु बहुत - बहुत समझाया। किंतु जब उन्हें लगा कि 'मेरे समझाने का कोई अर्थ नहीं निकलेगा' तब मौन हो गये और मन ही मन महामंत्र का जप करने लगे। अपनी आंखों के सामने कोई हत्याकाण्ड खेला जाए, यह बात उन्हें हरगीज मंजूर नहीं थी। ऐसे क्षणों में भी उनका अन्तर कहता था कि, " मारने वाले से बचाने वाले के पास ज्यादा बल और शक्ति का भण्डार भरा हुआ होता है।"
खीमजीभाई ने मन ही मन एक दृढ़ निर्णय करके अन्तिम बार मित्रों को समझाने का प्रयास किया, किन्तु निष्फल ! हिरणों की आवन जावन से सौन्दर्य भरपूर धरती पर युरोपियन रिवॉल्वर साथ में लेकर गाड़ी से उतरे । खीमजीभाई के मन में विचार आया कि, 'अबोल जीवों के खून से धरती न रंगी जाय और पापियों की दुष्ट इच्छा पूरी न हो, इस हेतु नवकार मंत्र का प्रभाव इस माहौल में शक्तिपात करे तो कैसा अच्छा?' इस विचार को बल देने हेतु वे एक पेड़ के नीचे काउस्सग्ग की मुद्रा में खड़े हो गये। इनके अन्तर में से आवाज आ रही थी कि, 'प्रबल संकल्प शक्ति कभी भी निष्फल नहीं जाती है।'
खीमजीभाई काउस्सग्ग मुद्रा में खड़े रह गये और युरोपियन अपने शिकार के शौक को पूरा करने मैदान में आये। हिरणों का समूह जब बहुत ही नजदीक में दिखाई दिया, तब उनके आनन्द का पार नहीं था। उन्होंने फौरन रिवॉल्वर में से गोलियां दागीं। उनके अन्तर में विश्वास था
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