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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? नजर दूर-दूर दौड़ते हुए एक हिरण के वृन्द पर पड़ी तब वे अपनी रिवॉल्वर को तैयार करने लगे। खीमजीभाई इन सभी का इरादा तुरन्त ही समझ गये, इसलिए उन्होंने कहा, "भारतीय संस्.ति में एक महत्त्व की बात कही है कि, 'जो वस्तु लेने के बाद पुनः वापिस लौटाने हेतु यदि हम समर्थ नहीं हैं तो, वह वस्तु हमें नहीं लेनी चाहिये! इस एक सिद्धान्त का ही यदि हम सब अमल कर दें तो, यह दुनिया स्वर्ग से भी अधिक सूहावनी हो जायेगी।"
युरोपियनों के मन पर शिकार की कड़ी धून लगी थी, फिर भी उन्होंने कहा, "इसमें क्या बड़ी बात है? जो नहीं दे सकते, वह नहीं लेना" इसमें कौन सा बड़ा दर्शनशास्त्र है?" खीमजी भाई ने कहा "तो | ऐसा करो, तुम मुझे वचन दो, कि जो लेकर हम वापिस नहीं दे सकते हैं, उसे लेने का कभी प्रयास भी नहीं करेंगे।"
युरोपियनों को यह बात एकदम सरल लगी। उन्होंने तुरन्त कहा, "जाओ, दिया वचन। जो वस्तु लेने के बाद वापिस नहीं दे सकते उसे कभी नहीं लेंगे।"
खीमजीभाई ने रहस्य का स्फोट करते हुए कहा, "तो अब यह रिवॉल्वर मुझे दे दो, तो ही तुम वचन का सही पालन कर पाओगे। तुम्हारे वचन पालन में रिवॉल्वर बाधक बनने जैसी है।"
युरोपियनों की आंखें आश्चर्य से भर गयीं। उन्होंने कहा "उस हिरणों के वृन्द को देखते ही शिकार का हमारा शौक जागृत हो उठा
और उसी क्षण में रिवॉल्वर तुम्हें कैसे दे सकते हैं? और इस नियम के साथ रिवॉल्वर का सम्बंध भी क्या?" खीमजीभाई को लगा कि, मित्रों को अब सही सिकंजे में फंसा सकें, ऐसा मौका है। इस कारण उन्होंने कहा, "देखो, इस रिवॉल्वर के द्वारा तुम हिरणों के प्राण लोगे ना? अब लिए हुए प्राण वापिस हिरणों को देकर तुम हिरणों को पुर्नजीवित करने में समर्थ हो? यदि तुम्हारे पास ऐसी ताकत है, तो मुझे रिवॉल्वर नहीं चाहिये, तो तुम शिकार खेलो, इसमें भारतीय संस्:ति को बीच में बोलने का कोई