________________
जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
चंबल की उन खतरनाक घाटियों में बिताये हुए बेचैनी भरे 13 दिन और बेचैनी में भी, अभय देने वाली, महामंत्र श्री नमस्कार एवं श्री शंखेश्वरजी की दैविक शक्ति भी एक ऐसा ही प्रसंग है। दिल की तिजौरी में हम इसका संरक्षण करेंगे और अंधकार एवं आपत्ति का मार्ग आयेगा, तब इस तिजौरी में से, इस मणि मुक्ता के प्रकाश से राह को प्रकाशित करेंगे और प्रकाशयात्री बनने का गौरव हांसिल करेंगे।
लेखक - पू. आ. श्री. विजयपूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.
'रिवॉल्वर जब खिलौना बनता है।
सूर्य का उदय अभी-अभी ही हुआ था। महाराष्ट्र की धरती के दो शहर धूलिया एवं पांचोरा का राजमार्ग वाहनों के आने जाने से जीवंत लग रहा था। आज से 50-75 वर्ष पूर्व इस राजमार्ग पर तरह-तरह के वाहन यात्रा करते थे। इसमें एक घोड़ागाड़ी में कुछ युरोपियन एवं पक्के जैन श्री खीमजीभाई हीरजी लोड़ाया, धूलिया से पांचोरा जा रहे थे। खीमजीभाई का अंग्रेजी भाषा पर अच्छा प्रभुत्व था और व्यापार की दृष्टि से उनका परदेशी जनता के साथ कभी कभी सम्पर्क होता था। इसी कारण आकर्षक अंग्रेजी भाषा वह बोल सकते थे।
खीमजीभाई को महामंत्र नवकार पर भारी आस्था थी। वे मानते थे कि व्यापार धंधे के लिए परदेशी जनता के साथ सम्पर्क रखने के बावजूद भी वे जैनत्व को टिका सके थे, वह प्रभाव महामंत्र का ही था। जिसके कारण वे नियमित नवकार मंत्र का जप करते थे और जब परदेशी प्रजा को मांसाहार की भयंकरता समझाने का मौका मिलता, तब नवकार मंत्र का स्मरण कर इस मौके को झड़प लेते थे ।
युरोपियनों के साथ धूलिया से पांचोरा जा रहे खीमजीभाई की बातों का विषय था- " भारतीय संस्कृति की भव्यता" । घोड़ागाड़ी की मुसाफिरी के खुशनुमा वातावरण में अभी चर्चा का रंग जमा ही था, उसमें एकाएक बाधा पड़ी। वे युरोपियन शिकार के बड़े शौकिन थे। उसमें भी जब इनकी
87