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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - मंत्र के ही एक सहारे, हमारा टिफिन नहीं आता उसकी चिन्ता हमारे जमादार भाई को होती। वह कहते "चाचा! आज कर्णों के कारण मंजुलाबेन नहीं आ सकेंगे। मेरी ड्युटी पूरी होगी, तब मैं चक्कर काटकर मंजुला बेन को टिफिन के साथ लेता आऊँगा और फिर यहां से कोर्ट में से कपर्यु पास निकाल कर आता हूँ।" एक दिन हमारे पड़ोसी के लड़के
की शादी थी। दुल्हा घोड़े पर मेरे पैर छूने आया। दुल्हे के साथ बातें कर | रिवाज के अनुसार उसको तिलक निकाल कर आशीर्वाद देकर विदा किया। एक दिन अन्दर बैठे-बैठे दिन में हम दोनों भाई एवं हरिवल्लभभाई |बातें कर रहे थे। बातों ही बातों में हरिवल्लभभाई ने बात की कि, 'तुम्हारे
जेल में आने के बाद, तुम्हें या मंजुलाबेन को चिन्ता जैसा कुछ भी नहीं है।' मैंने कहा कि, 'यह भी अपने कर्म में लिखा होगा, जेल में भी मेरे |संबंधी मिलने आते हैं। एक दिन मेरे संबंधी भाभी महेसाणा से मुझे मिलने
आये। जब भाभी वापिस जा रहे थे, तब उन्होंने कहा कि,"खुशालभाई! तुम जेल में हो या महल में? महल में रह रहे हो वैसा तुम्हारा रौब है। यह किस प्रकार सुविधाएं मिलती हैं?' तब मैंने भाभी से कहा कि "अपने भगवान की कृपा से सभी अच्छा है, और हम सही हैं। हमने ऐसा कोई भी पाप किया होता तो हमें यह सुविधाएं नहीं मिलती।"
मेरे लिए जेल में कपड़े धोने वाला आदमी अलग, सिर की चंपी करने वाला अलग, पैर दबाने के लिए अलग, मेरा टिफिन साफ करने वाला अलग, ऐसी सुविधाएं नवकार मंत्र से ही मिलती हैं। इस प्रकार जेल में दिनों के ऊपर दिन बीत रहे थे। जेल के बाहर नवनिर्माण के लिए दंगे-फसाद होते रहते थे, इसलिए मुझे कोर्ट-कचहरी जाने का मौका नहीं मिला। मेरे तीन-तीन माह जेल में बीत गये। बहुत-बहुत आरोपी जेल में आते गये और जाते गये। ऐसे करते-करते मेरे मोहल्ले की श्री घेल माताजी का महोत्सव आया। मैं इस महोत्सव में गोर महाराज के रूप में काम करता हूँ। मोहल्ले के सभी सोचने लगे कि इस बार माताजी के वर-बेटड़ी के समय के गोर महाराज तो जेल में हैं। मोहल्ले के प्रमुख लोग जेल में मुझसे मिलने आये। बातें कीं। जमानत पर छूटने के लिए
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