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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - वहाँ हमारा अभ्यास अच्छा चलता था। उस दौरान वहाँ संघ की पाठशाला में बालकों को धार्मिक शिक्षण देने वाले श्रीयुत लालचंद भाई का परिचय हुआ। उनके साथ नवकार के बारे में चर्चा निकलती। उन्होंने नवकार के चमत्कार के अपने स्वानुभव सुनाये। जो उनके ही शब्दों में पेश करता हूँ।
उन्होंने कहा कि, "साहेब! छोटी उम्र से ही मुझे नवकार के प्रति बहुत श्रद्धा थी। एक बार हमारे गांव में कोई मदारी आया, जो छोटे बडे जादू के खेल लोगों को दिखाता था। उसके हाथ की सफाई के खेल एवं जादुई करिश्मों से गांव के लोग मोहित हो गये। पूरे गांव में उसकी चर्चा होने लगी। लोगों के टोले के टोले उसके जादू का खेल देखने जाने लगे। में भी इस टोले में शामिल हो गया। गांव के चौराहे पर उसका खेल शुरू होने की तैयारी में था। गांव के लोग गोल घेरा बनाकर खड़े हो गये। मैंने बीच में अपनी जगह निश्चित की।
डमरू बजा और उस जादूगर के जादुई करिश्मे प्रारम्भ हुए। उसमें एक खेल ऐसा आया कि उस जादूगर ने एक खाली बर्तन खड़े लोगों में से एक को बुलाकर उसके हाथ में पकड़ाया। दर्शकों में से आया हुआ आदमी भी उत्साह से बर्तन ले लेता है। फिर वह जादूगर ऐसा कुछ मंत्र पढ़ता है। जिसके कारण दर्शक के हाथ में रहा हुआ खाली बर्तन गर्म होने लगता है। इसलिए जिस भाई ने बर्तन पकड़ा था , वह उसे छोड़कर चला जाता है, क्योंकि उसके हाथ जलने लगते हैं।
यह देखकर मुझे भी कुतूहल जगा और उस टोले को चीरकर मैं उस मदारी के आगे पहुँच गया। मैंने कहा कि-"लाओ, मुझे दो यह बर्तन, मैं पकड़ सकता हूँ।" उसने कहा कि -"नहीं पकड़ सकोगे, अभी छोड़कर भाग जाओगे।" मैंने कहा कि, "तुम दो तो सही।" सभी लोग मेरे सामने देखने लगे। मैंने वह खाली बर्तन हाथ में लिया और मदारी के सामने खड़ा हो गया। वह मन में मंत्र बोलने लगा।
इस ओर मुझे भी लगा कि, यह तो कुतूहल वृत्ति से में यहाँ आ गया। यदि मदारी ने इस बर्तन को गरम कर दिया तो फिर मैं क्या
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