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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? अब वह भाई घबराये। किंतु नवकार महामंत्र पर श्रद्धा होने के कारण, जिस मार्ग से घर आये थे, उसी मार्ग में पैकेट को खोजने चलने लगे। मन में नवकार मंत्र का रटन और मुम्बई की सड़क पर हीरों का पैकेट खोजने निकल पड़ी उनकी नजर!
मोहमयी मुम्बई नगरी और ट्राफिक का पार नहीं, जहाँ पाँच का नोट गिर जाए तो पांच मिनट बाद भी मिलना मुश्किल, तो पन्द्रह-सोलह हजार रुपयों के हीरे और दो घंटे बाद किस प्रकार मिल सकें?
किंतु उस भाई को तो ऐसी श्रद्धा थी कि, नवकार गिनता-गिनता जाऊँ तो अवश्य पैकेट कहीं से भी मिल जायेगा और हुआ भी वही। चमत्कार हुआ!
उन्होंने थोड़े ही दूर चलते एक कपड़े की दुकान के पास से गुजरते किसी की आवाज सुनी। "खड़े रहो! तुम्हारे हीरों का पैकेट यह रहा, यहाँ आओ।" उस भाई की नजर उस ओर गयी। देखा तो धूल में सटा हुआ वह पैकेट! दौड़कर, उठाकर, खोलकर देखा तो वही, सभी हीरे सुरक्षित!
उनके आनंद का पार न रहा। पैकेट बंदकर जेब में डालते ही पहले विचार आया कि 'चलो, जिन्होंने मुझे पैकेट बताया उनका आभार प्रकट करके, उनको कुछ इनाम दूं।'
किंतु आश्चर्य! चारों ओर नजर घुमाई किंतु वे भाई दिखाई नहीं दिये!...
दिखे भी कहाँ से! वह इस दुनिया का औदारिक शरीरी मानव हो ही नहीं सकता। वह होगा वैक्रिय शरीरी कोई देव, जो नवकार का अधिष्ठाता हो और उसके भक्त की मदद करने वहाँ आया हो। यहाँ का मानव पैकेट बताये ही कहाँ से? और बताये तो एकदम चलता न बने।
तब मानना ही पड़ेगा कि यह नवकार महामंत्र ही कर सकता है।
जादू के उपर जादू
हम जामनगर के चातुर्मास के बाद महेसाणा पढ़ने के लिए गये थे।
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