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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - कंठस्थ करवाती हूँ। उसकी 7 वीं ढाल में गाथा नं. 4 से 7 तक की पंक्तियों में नवकार मंत्र के प्रभाव का वर्णन करती बुलन्द घोषणा है। बारबार उसका चिंतन करती करवाती हूँ। नवकार में भाव एवं प्रभाव दोनों भरे हुए हैं।
__एक बार विहार में, रास्ते के बीच में (पांच-सात फीट से कुछ अधिक दूरी पर) जहरीले नागराज फण ऊँची कर स्थिर थे। हम घबराये। एकदम दौड़कर सामने पड़े पत्थर के ओटे पर चढ़ गये। कंपकंपी! अब क्या करना? हम केवल दो ही साध्वियाँ थीं। नागराज ने तो अड्डा जमा दिया। हम भी वहां से भाग सकें वैसा नहीं था। हम एक घंटे तक नवकार एवं उवसग्गहरं गिनते ही रहे। नागराज पास के खेत में चले गये। हम भी गांव की और चले। भय और संकट दूर हुआ।
ऐसी चमत्कारिक घटनाओं से किसका हदय नाच न उठे! फिर तो चलते-फिरते, सोते-जगते, किसी भी कार्य में "नवकार" साथी होता है। कोई भी पूजन हो तो आठ दिन तक मेरा हदय नाचता रहता है। मंत्रों-श्लोकों से मेरा दिल बहुत द्रवित हो जाता है, इतना ही नहीं, हजारों | की भीड़ में, चतुर्विध संघ की उपस्थिति में भी मेरा अंतर भीग जाता है। मेरे नयनों में से हर्षाओं का स्रोत बह जाता है। मैं किसी अगम्य, अगोचर, अवर्णनीय भाव में डूब जाती हूँ। इसमें भी जब सिद्धचक्र पूजन में यह श्लोक चालु हो "श्री सिद्धचक्रं तदहं नमामि" तब अवश्य रो पड़ती हूँ। "नमः" शब्द कितना भाववाचक... कैसे भाव टपकते हैं! उसमें भी नमस्कार परमेष्ठि भगवंतों-गुरुजन-बड़ों आदि को किया जाता है। जिसके कारण विनयादि गुण प्रकट होते हैं। जीवन में लघुता आती है। जो झुकता है वह सबको अच्छा लगता है। हम क्षमा मांगते हैं (खमाते हैं) उसमें भी यही भाव है। इसलिए "नमामि और खमामि" यह दो शब्द अपने जीवन का सार है। प्राणी मात्र को नमो और खमो (क्षमा मांगो)।
नमो शब्द में करुणा आत्मीयता, नम्रता, मैत्री आदि भाव भरे पड़े हैं। नवकारमय बन जायें तो सहजता से उत्तमोत्तम गुण प्रकट होते हैं।
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