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आखिर एक दिन वह व्यंतर कहने लगा कि - 'नवकार महामंत्र के तेज को मैं सहन नहीं कर पाता, मैं जलकर भस्म हो जाऊँगा इतना दाह मुझे हो रहा है, इसलिए मैं जाता हूँ' ऐसा कहकर हमेशा के लिए उसने उपद्रव करना छोड़ दिया !.....
जिस तरह मिथ्यादृष्टि व्यंतर देव जप से चलित करने के लिए उपसर्ग करते रहे उसी तरह दूसरी और अनेक सम्यग्दृष्टि शासन देव-देवी श्री प्राणलालभाई को दर्शन देने लगे । अभी तक चत्र्केश्वरी, पद्मावती, महाकाली, लक्ष्मी, सरस्वती इत्यादि देवियोंने एवं मणिभद्र, घंटाकर्ण, कालभैरव, बटुकभैरव इत्यादि देवोंने जप के दौरान उनको दर्शन दिये है और उनके जप की बहुत अनुमोदना की है । कुछ देवोंने उनकी परीक्षा करने के लिए प्रलोभन भी दिये हैं मगर वे लुब्ध नहीं हुए एवं किसी भी भौतिक वस्तु की याचना कभी भी देव - देवियों के पास नहीं की है इसलिए देव अधिक प्रसन्न हुए हैं। प्रतिदिन के जप की संख्या एवं अनुभवों का वर्णन वे लिखते रहते हैं जो हमें दिखाया था ।
उनके पिताजीने भी सवा करोड़ नवकार का जप किया था । उन्होंने भी देवलोक में से आकर प्राणलालभाई को दर्शन दिये एवं जप के लिए अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त की है । उनके परिचित अन्य भी कुछ रिश्तेदार जो स्वर्गवासी हुए 'हैं उन्होंने भी दर्शन दिये हैं । कई बार देवोंने गुलाब के पुष्पों की वृष्टि और अमीवृष्टि भी की हैं। पूर्व जन्म की पत्नी जो हाल देवी है उसने भी उनको दर्शन दिये हैं । अगले जन्ममें एक संपन्न कच्छी परिवारमें मुम्बई में उनका जन्म हुआ था । वहाँ भी उन्होंने नवकार महामंत्रकी सुंदर आराधना की थी ऐसा पत्नी देवीने बताया है ।
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पता : प्राणलालभाई लवजी शाह
नानी बाजार,
मु. पो. ध्रांगधा,
जि. सुरेन्द्रनगर (गुजरात) पिन : ३६३३१०
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