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१४ करोड़ नवकार जप के आराधक
पाणलालभाई लवजी शाह सौराष्ट्र के ध्रांगध्रा शहरमें रहते हुए प्राणलालभाई (उ. व. ६८)ने B.Sc. तक व्यावहारिक अभ्यास किया है । पहले अनाजका होलसेल का धंधा एवं सूद पर पैसे देने का व्यवसाय करते थे । आज वे पिछले १५ सालसे निवृत्त हैं।
अध्यात्मयोगी प. पू. आचार्य भगवंत श्री विजयकलापूर्ण सूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से पिछले १० सालसे वे नवकार महामंत्र की आराधना में विशेष रूपसे संलग्न हुए हैं।
उत्तरोत्तर जपमें अभिरूचि बढ़ती गयी और वे प्रतिदिन १३-१४ घंटों तक नवकार महामंत्र का जप करते रहते हैं ।
प्रात: ३ बजे से लेकर शामको ७ बजे तक आहार - निहार एवं जिनपूजा सिवाय के समयमें वे नवकार महांत्रका जप करते रहते हैं।
जैसे जैसे जप की संख्या बढ़ती गयी वैसे वैसे कुछ मिथ्यादृष्टि व्यंतर देव जप को छुड़ाने के लिए अनेक प्रकार के प्रतिकूल एवं अनुकूल उपसर्ग करने लगे । भयंकर सर्प आदि दिखाकर जप छोड़ देने के लिए दबाव देने लगे तो कभी रूपवती महिलाओं को दिखाकर उनको चलायमान करने के लिए प्रयत्न करने लगे । लेकिन उपरोक्त आचार्य भगवंत एवं महा तपस्वी प. पू. आ. भ. श्रीमद् विजय हिमांशुसूरीश्वरजी म. सा. के मार्गदर्शन के मुताबिक वे डरे नहीं और जपमें अडिग रहे । फलतः मिथ्यादृष्टि देवों का कुछ भी बस चलता नहीं है।
एक बार प्राणलालभाई एक पेड़ के नीचे लघुशंका निवारण करने के लिए बैठे थे, तब उस वृक्षमें रहनेवाले एक व्यंतर देवने उनके शरीरमें प्रवेश किया और उनको अत्यंत परेशान करने लगा । लेकिन मुनि श्री शांतिचन्द्रसागरजी म.सा. की प्रेरणा के मुताबिक अन्य कोई उपाय न करते हुए प्राणलालालभाई ने नवकार महामंत्र का जप चालु रखा था ।
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