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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - जिन्दगी में या अन्तिम समय में अपनी आत्मा सन्तोष भी अनुभव कर सकती है कि मेरे हाथों से कम से कम इतना सुकृत तो हुआ। इस प्रकार लिखित जाप की शुरूआत करने से पहले ही अपना शब्दों का मेल तो शुद्ध है या नहीं, इसका ऐसा गुरुगम से निर्णय कर लेना चाहिये।
(2) नवकार वांचन : लेखन की तरह वांचन में भी चित्त की आसानी से एकाग्रता आ जाती है। इसलिए नवकार की आकर्षक तस्वीर, स्टीकर, या पुस्तक सामने रखकर प्रथम कक्षा के छात्र की तरह एक-एक अक्षर अलग-अलग पढ़कर रोज कम से कम 12 नवकार या उससे ज्यादा बार (108 वगैरह) नवकार पढ़ने का अभ्यास करना चाहिये। इससे आंखें पवित्र बनती हैं और चित्त की चंचलता कम होती है।
नवकार वांचन के लिए अपने हाथ से लिखी हुई नवकार की डायरी का उपयोग करने से नवकार लेखन की सार्थकता भी होगी। नवकार वांचन में एक बात खास ख्याल में रखने योग्य है कि जब मुंह से जिस अक्षर का उच्चारण होता है तब दृष्टि भी उसी अक्षर पर होनी चाहिये। उच्चार शुद्धि की आवश्यकता
नवकार लेखन में मेल की शुद्धि की आवश्यकता के बारे में आगे विचार किया। ऐसे ही नवकार मंत्र के वांचन के लिए उच्चार शुद्धि की मुख्य भूमिका है। अपने शरीर में एवं समस्त विश्व में पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश यह पांच महाभूत व्याप्त हैं। नवकार मंत्र के शुद्ध उच्चार से जो आन्दोलन उत्पन्न होते हैं, उनका पांच महाभूतों पर अनुकूल शुभ असर होता है। उसी प्रकार उसके अशुद्ध उच्चार से समस्त विश्व के वातावरण पर प्रतिकूल असर होता है। इस बारे में नवकार मंत्र के विशिष्ट आराधक श्राद्धवर्य श्री दामजीभाई जेठाभाई, (कच्छ-सुथरी) की प्रेरणा से विदेशों में प्रयोगशाला में सफल प्रयोग भी हुए हैं। इसलिए गुरुगम से शुद्ध उच्चार सीख लेना चाहिये।
यहां शुद्ध उच्चार के लिए जरूरी कुछ सूचन दिये गये हैं। जहां जहां जोडाक्षर आते हैं वहां-वहां, जोडाक्षरों पर भार न देकर
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