________________
जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
गुरुदेव श्री दर्शनसागरसूरीश्वरजी म.सा के साथ में प.पू. गणिवर्य श्री नित्योदय सागरजी म. साहेब ने मेरे अच्छे अक्षर देखकर थोड़ा लिखने को दिया । मुनिराज श्री चन्द्राननसागरजी म.सा. ने मुझे थोड़ी स्तुतियां लिखने को दीं। घर में रहकर लिखने में मन लगाकर रखा। शाम हुई, तलप जगी । क्लब गया। दारु पिया, जुआ खेला। जीता और दारु पिया। रात के 12 बज गये। दारु पीकर लड़खड़ाता लड़खड़ाता घर आया। हां नवकार मंत्र बोलकर ही दारु पिया था। खाना खाया, न खाया और सो गया। दूसरे दिन सवेरे उठकर सीधा दारु पीने गया । पैसे जेब में थे। जुआ खेला, जीता। बाहर के ट्युशन जाना था, वहां गया। प. पू. मुनिराज साहेब ने लिखने को दिया था, वह नहीं लिख सका। प. पू. मुनिराज श्री दिव्यानन्दसागरजी म.सा. को पढ़ाने गया। पढ़ाया और साहेब के पैर छूकर वन्दन किया । साहेब कुछ नहीं बोले, मैं घर आ गया। प. पू. गणिवर्य श्री नित्यानन्दसागरजी म.सा. की डायरी लिखने बैठा। सच मानना वह लिखने में समय कहां गया उसका पता ही नहीं पड़ा।
मैंने रात्रि को 2 बजे तक सुन्दर मोड़दार अक्षरों से डायरी के लगभग 50 पेज लिख दिये और सो गया। मैं सवेरे जल्दी उठकर लिखने के लिए बैठ गया। दो घंटे लिखकर दातुन पानी किया। घर के सभी को आश्चर्य लगा। मुझे स्वंय को आश्चर्य लगा चाय-पानी, नाश्ता किया, नहा धोकर वापिस लिखने के लिए बैठ गया। श्रीमती भी अचम्भे में पड़ गई, आज कैसा शकून भरा दिन उदय हुआ होगा, ऐसा वह मन में सोचती होगी। जो आदमी 24 घंटे नशे में रहता है उसने 20 घंटे किस प्रकार निकाले ? लिखकर खाना खाने बैठ गया। खाना खाकर सो गया। आराम करके ट्युशन करवाने गया। वहां बालकों को पढ़ाकर घर आया। मैंने चाय मांगी तो पत्नी खुश हो गयी। दारु के स्थान पर चाय ? आश्चर्य मुझे भी लगा। विचारों ही विचारों में प. पू. मुनिराज को पढ़ाने का समय हो गया । आज पढ़ाने में बहुत रस आ रहा था। मुनिराज श्री चकित हुए। मुंह में से बदबू नहीं आ रही थी। उन्होंने पूछा, 'क्यों कान्तिभाई ! जेब में पैसे नहीं हैं क्या? आज ऐसे कैसे?" मैंने कहा, "साहेब, पैसे तो आपकी मेहरबानी से
340