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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? हैं। दुल्हा काला होता है, कुरूप होता है, फिर भी जबशादी करने जाता है तब सभी अच्छे रूपकों से उसके गीत गाये जाते हैं। इन गीतों में जिस तरह वास्तविक वस्तुदर्शन नहीं होता, उसी प्रकार नवकार के गुणगान भी वस्तुस्थिति का निरूपण नहीं करते, किन्तु नवकार के मात्र "गीत" स्वरूप हैं।
आज लगभग सर्वत्र कहा जाता है कि, 'नवकार का जैसा प्रभाव बताया गया है, वैसा दिखाई नहीं देता। हमने बहुत नवकार गिने, किन्तु चमत्कार दिखाई नहीं दिया। यह शिकायत क्यों सुनाई देती है? क्या नवकार में से शक्ति कम हो गई है? या फिर यह झूठी शिकायत है?
क्या कमी है? __नहीं, नवकार की शक्ति भी घटी नहीं है, और यह शिकायत भी झूठी नहीं है। परन्तु इस शिकायत की जड़, जिस प्रकार हम नवकार का प्रयोग करते हैं, उसमें निहित है। एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट होगी। | रोटी गेहूँ के आटे से बनती है, यह हकीकत है, परन्तु गेहूँ के आटे से रोटी तक पहुँचने तक की एक निश्चित प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया का यदि एक चरण भी छोड़ दें तो? गेहूँ का आटा लेकर सीधा तवे पर डाल दिया जाये तो रोटी तैयार हो जायेगी? नहीं, उल्टा आटा ही जल जाएगा। रोटी चाहिए तो आटे में निश्चित मात्रा में पानी डालकर गूंदना पड़ेगा। फिर उसमें से लोथें (लोईए) बनाकर, इन लोथों को बेलकर तवे पर डालकर उसे निश्चित मात्रा में ताप देना पड़ेगा तभी आटे से रोटी बनेगी, यह तो रोटी के लिए स्थूल प्रक्रिया की बात हुई। बीच में छोटे-छोटे अनेक चरणों से गुजरना पड़ता है। उसी प्रकार नवकार की जिस महिमा का वर्णन किया गया है, उसे अनुभव करने की भी एक प्रक्रिया है। उस प्रक्रिया की | उपेक्षा करके तो हम नवकार के पास नहीं जाते हैं ना? ।
एक दूसरा उदाहरण लेते हैं : इलेक्ट्रिसीटी की फिटिंग घर में करवाई, वायर डाला गया, बल्ब लगाया गया, बटन भी दबाया, फिर भी प्रकाश नहीं जगमगाये तो? कहाँ गलती है, वह जानने निकलते हैं। बल्ब,