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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - किसको आश्वासन देता? अन्त में मैंने सभी को सांत्वना दी और उपधि-पातरे उतारकर दृष्टि पडिलेहण कर के सभी श्रमणियाँ भूमि पर बैंठी। हम एकाग्रचित्त से मन्त्राधिराज नवकार के ध्यान में लीन बन गये। हमने अरिहन्त-सिद्ध आदि पंच परमेष्ठी की शरण रूप, भवजलधि तारक तिनका पकड़ लिया। नवकार को सर्वस्व बना दिया। अभी तो 5-10 और |15 मिनट हुए ही नहीं, इतने में तो हमने कोई मानव नजदीक आते देखा। वह पास में आकर तुरन्त ही सीधे मार्ग पर चढ़ाकर अदृश्य हो गया। कहाँ गया, उसका कुछ भी पता नहीं चला!
स्वप्नवत् सभी कार्य हो गया। कौन होगा? कहाँ से आया? घोर अटवी में आना... अदृश्य हो जाना...मैं यह सभी जब विचार करती हूँ, तब मस्तक झुक जाता है, नवकार महामंत्र की शरण में।
मेरा नवकार मन्त्र के 'अजपाजाप' से जीवन आगे बढ़ रहा है। एक बार शंखेश्वर जाते हम रास्ता भूले। वहाँ एक घुड़सवार आकर पथ बताकर अदृश्य हो गया। ऐसे-ऐसे अनेक चमत्कारों से महामन्त्र नवकार और जैनशासन के प्रति अपूर्व श्रद्धा ज्यादा दृढ़ बनती है। वैराग्य भाव की वृद्धि होती है।
लेखिका- सा. श्री नेमश्रीजी (साबरमती) "जीभ में अमी वापिस आ गयी!"
हम संवत् 2029 के वर्ष का वांकानेर चातुर्मास पूर्ण करके संवत् 2030 में विहार कर शीतकाल में मोरबी आये। वहाँ अचानक मेरी तबीयत बिगड़ने पर (सर्दी,बखार) डॉक्टर की सेवा ली। डॉक्टर अति तेज असर वाली दवा देकर रोग को फुर्ती से काबू में लेना चाहते थे। अति तेज असर वाली दवादयों से रीएक्शन हुआ। रात को एकाएक जीभ सूख गयी एवं अन्दर खींचने लगी। मैंने जीभ को दांतों के बीच दबाकर रखी तो जीभ मोटी (जाडी ) होती गयी। मैंने मन में नवकार का स्मरण किया। दांत की पकड़ ढीली की तो वापिस वही खींचान। रात का समय होने से
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