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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - पानी तो पिया नहीं जाता। सहवर्ती साध्वीजियों को जगाकर मेरी तकलीफ जताई। सभी घबराये, कहीं लकवा तो नहीं हो गया? उपाश्रय में एक गृहस्थी बहिन सोये थे। उन्होंने डॉक्टर को बुला लाने की बात कही। रात को डॉक्टर आये तो भी क्या? किन्तु बहिन न माने। वह डॉ. को बुलाकर लाये। डॉ. जैन ही थे। उन्होंने देखा और कहा, 'लकवा तो नहीं है, किन्तु क्या है यह समझ में नहीं आता।' दवा तो सुबह ही लेनी थी। डॉ. चले गये। जैसे-तैसे रात व्यतीत की। सूर्योदय के बाद उपचार किये। दिन में थोड़ा ठीक लगा। सूर्यास्त हुआ और चौविहार का प्रत्याख्यान किया। शाम का प्रतिक्रमण हुआ। और वापिस वही तकलीफ शुरू हुई। मुंह में थूक ही नहीं और जीभ खींचने लगी। अब क्या करना? पोष माह की ठण्डी व लम्बी रात! सभी मेरे पास आकर बैठ गये। मैंने कहा, "चिन्ता मत करो। नवकार की धून मचाओ।' में भी एक से ध्यान नवकार मन्त्र की आराधना में जुड़ गयी। संथारा एवं स्व-आत्म-आलोचना कर ली। वापिस मन नवकार मन्त्र में जोड़ दिया। शायद प्राण जाये, तो भी मैं चिन्ता रहित थी। मौत भूला न दे इसलिये में सावधान थी। धून चालु ही थी। एकाएक रात को 11 बजे मुंह में अमी आ गया। मुझे आश्चर्य हुआ। मैंने सभी से कहा, "नवकार मन्त्र के प्रभाव से मेरे मुँह में अमी आया है। अब तुम चिन्ता मत करो!" किन्तु इस प्रकार प्रतिदिन होने लगा। रोज की तकलीफ और रोज का नवकार मन्त्र का जाप! मेरी गुरुबहिनें एवं संसारी बहिनें जाप आराधना करती थीं। परिस्थिति चिन्ताजनक थी। अन्त में मोरबी के तमाम डॉक्टरों तथा वैद्य की भी सेवा ली, किन्तु तकलीफ दूर नहीं हुई।
संघ ने राजकोट से डॉ. बुलवाने का कहा, किन्तु मैंने कहा, "नहीं, अब डॉ. को बुलाना नहीं है। तुम्हारी बहुत अभिलाषा हो तो नवकार का नौ लाख का जाप करवाओ।" 65-70 बहिनें जाप में जुड़ीं। प्रतिदिन सतत चार घण्टे जाप होता था, नौ दिन में जाप पूरा हुआ और मुझे भी ठीक हो गया। आज बिल्कुल अच्छा है। जय हो अमी दाता महामन्त्र नवकार की।
लेखिका- सा. श्री मीना कुमारी (लीबड़ी सम्प्रदाय)
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