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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार?
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यह पथ दर्शक कोन होगा?
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मैंने छः वर्ष की कोमल वय में मातृश्री वेजबाई के साथ दीक्षा ली थी। कच्छ-डुमरा के रहने वाले हमने ललाट में चारित्र धर्म का सौभाग्य प्राप्त किया। मेरे 86 वर्ष के दीक्षा पर्याय में वर्तमान में 92 वर्ष की वृद्ध उम्र है। फिर भी पाँचों इन्द्रियों की मजबूती, शरीर सम्पति का अपूर्व वैभव 25 वर्ष के युवान को भी शर्माता है। वह सभी प्रभाव यदि किसी का है तो वह प्रकट प्रभावी पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध का ही है।
नवकार मन्त्र के प्रबल प्रभाव से मेरे मन में जो-जो भावनायें होती हैं, वे सभी मानो अनायास ही पूर्ण हो जाती हैं। छः वर्ष का बालमानस...संसार की भौतिकता का जहाँ स्पर्श भी नहीं हुआ, ऐसे अभी तक के सयंम जीवन में कभी रत्नत्रयी की आराधना में स्खलना नहीं आयी। सभी भावों की सिद्धि का साधन है, केवल मन्त्राधिराज। संसार अटवी को निर्भय रूप से पार करने का मार्ग अर्थात् नवकार मन्त्र...। ___मैंने 86 वर्ष के संयमी जीवन में गाँव-गाँव विहार करते कितने ही तीर्थों की यात्रा की। जीवन को सम्यग् दर्शन से निर्मल बनाया। हम एक बार परम तारक तीर्थकर भगवन्तों के कल्याणकों की भूमि बिहार प्रान्त में विहार कर रहे थे। उस समय आज की तरह रोड़, रास्ते नहीं थे, जिससे गहन जंगलों से गुजरना पड़ता था। हम भयंकर जंगल में जा पहुंचे। चारों ओर से जंगली जानवर दौड़-भाग करते हुए जैसे बैण्ड बाजों से सामैया न कर रहे हों, वैसा आभास हो रहा था! मानव के पदचिह्न का नामोनिशान |दृष्टि पर नहीं आ रहा था। दूर-सुदूर नजर डालते मानो आँखें बाहर न आ गयी हों ऐसा लग रहा था। हम रास्ता भूल गये थे। वन की वनस्पतियां भी मानो नाराज हो वैसे काउस्सग्ग ध्यान में स्थिर हो गयी थीं। पवन-देव तो अदृश्य हो गये थे। ऐसे घोर जंगल में स्त्री की कितनी ताकत? आखिर तो नारी अबला ही है ना? हदय की धड़कन बढ़ गयी। सहवर्ती श्रमणी वृन्द आकुल व्याकुल बन गया। सभी ही हिम्मत हार जाते तो, कौन
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