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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? स्वयं की परवाह किये बिना खड़े पैर मेरी अच्छी-बुरी स्थिति में भी धार्मिक जीवन की देखरेख रखने वाली श्राविका ने तत्परता दिखाते हुए, मुझे पाप मार्ग से बचाने हेतु सुंदर हितशिक्षाएं देकर कर्तव्य का मार्ग अपनाया था।
ऐसी आदर्श श्राविका को पत्नी के रूप में प्राप्त कर, मेरे धार्मिक जीवन का निर्माण इसके सहारे ही हुआ है और होगा, इस विचार से उल्लास से क्षण भर प्लास्टर की जकड़न की वेदना भूल जाता और श्राविका के प्रति आज तक जो केवल कामवासना का पोषक साधन समझकर द्रव्य प्रेम था, वह मेरे आंतरिक जीवन को धर्ममय बनाने वाली साधर्मिक के रूप में भावप्रेम एवं गुणानुराग में परिवर्तित होने लगा।
वास्तव में धर्म-संस्कार विहीन म्लेच्छ धरती पर मेरे जीवन की कायापलट को स्थायी रूप देने से मैंने उसे मेरे जीवन की संचालक धर्मगुरु के रूप में स्वीकार किया है।
मैं इस प्रकार द्रव्य और भाव दोनों प्रकार के इलाज से थोड़े ही दिनों में ठीक हो गया।शरीर, सोचा था, उससे भी ज्यादा शक्तिशाली बन गया। जहाँ जिंदगी और मौत का सवाल था और सभी डॉक्टरों को लगता था कि शायद ऑपरेशन से जीवन बच जाये तो भी कमर के नीचे के भाग से पेरेलाइसिस की असर से दोनो पैरों में लकवा होने की पूरी संभावना थी, किंतु मैं सभी के आश्चर्य के साथ, बिना आलंबन से सहजता से चलने की स्थिति में पहुँच गया। मैं सबके मन में एक प्रश्नरूप बन गया।
अंत में लंदन की मेडिकल ऐसोशियेशन की खास मिटिंग में हमारे अस्पताल के डॉक्टरों ने समाधान पाने के लिए, लंदन के प्रख्यात अनेक M.D. डॉक्टरों को आमंत्रित किया। उस मिटिंग में डॉ. निकलसन ने मेरे केस की जानकारी प्रारंभ से लेकर अंत तक पेश की। मेरे केस की प्री-स्क्रीप्शन, दी गई दवाइयां, इंजेक्शन एवं विशिष्ट इलाज की जानकारी डॉ. रीड के मार्ग दर्शनानुसार पेश की।
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