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-जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? गया दूसरी ही किसी शक्ति का! जिनदास ने मन ही मन पक्का निर्णय लेकर, अपने मित्र को कहा "मुझे जो चमत्कार देखना था, वह देख लिया है। इस प्रसंग ने अत्यंत ही सचोट रूप से साबित कर दिया है कि, शक्तिमाता को हार स्वीकार करनी पड़ती है, ऐसी प्रचण्डं ताकत मेरे नवकार मंत्र में है। अब इतना ऐसा चमत्कार मिलने के बाद, यदि मैं नवकार की निष्ठा को छोड़ दूं, तो मेरे जैसा मूर्ख शिरोमणि दुसरा कौन कहलायेगा?" शक्तिमाता को विसर्जित कर दिया गया। सबके मुंह पर अलग-अलग प्रकार के आश्चर्य की तरंगें अंकित हुई थीं। भोपे के मन में आश्चर्य समाता न था। अपनी पराजय की नींव खोजने हेतु जिनदास को इतना ही पूछा कि,"तुम्हारे इष्टमंत्र का पाठ जानने का मेरा अधिकार है?"
जिनदास का आनंद और अहोभाव छलक उठा। इसने जवाब में | केवल इतना ही कहा कि, "नमो अरिहंताणं" ।
__(मुक्तिदूत के आधार पर) लेखक - प.पू. आ. श्री वि. पूर्णचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. मोहनभाई के मनमोहक अनुभव
विपुल पुण्य के कारण मेरा जैन कुटुम्ब में जन्म हुआ। इसी के साथ मुझे सभी धार्मिक प्रवृत्तियों के संस्कार मिले। नवकार से सब कुछ मिल जाता है और रोग-शोक-भय वगैरह अनिष्ट तत्त्व दूर होते हैंइस प्रकार जानने को मिला था। मैं इसी कारण बाल्यावस्था में संकट के समय नवकार गिनता और संकट दूर हो जाता था।
मुझे बारह वर्ष की उम्र में लालवाड़ी में एक मवाली लड़का हंटर निकालकर मारने आया। मैंने तब हंटर छीनकर उसे ही फटकारा। वह रोता हुआ जाकर अपने सरदार को बुला लाया। मैं तो घर जाकर पलंग के नीचे छिपकर नवकार गिनने लगा। दादी माँ ने उसे जैसे तैसे समझा कर विदा दी। इस प्रकार महासंकट में से बचने के कारण नवकार पर मेरी श्रद्धा मजबूत हुई।
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