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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
धीरे-धीरे जहर शरीर में फैलने लगा। गांव छोटा था । विशिष्ट वाहन व्यवहार की व्यवस्था नहीं थी। जिससे किसी विशिष्ट डॉक्टर आदि के पास ले जाने की अनुकूलता भी नहीं थी।
गांव के लोग मेरे पास आये, "महाराज ! जो चाहे वह करो किंतु इस बहिन का जहर उतारो। " कौन जाने, किसने प्रेरणा दी। किंतु मैंने श्री नवकार का एक चित्त से जाप शुरू कर दिया।
महामंत्र का प्रभाव कोई अजीब कोटी का होता है, जो इसकी शरण में जाता है उसे यह कभी निराश नहीं करता । मात्र जरूरत होती है थोड़े धैर्य की ।
विश्वास के साथ धैर्य बल मिलता है तब कार्य अवश्य सिद्ध होता है। यहाँ भी वैसे ही हुआ। शरीर में फैले विष का वेग कम होने लगा । धीरे-धीरे विष की ताकत एकदम नष्ट हो गई। मेरा जाप जब मैंने पूर्ण किया। तब उस बहिन को कुछ भी नहीं हुआ हो वैसे हाथ जोड़कर श्री नवकार का अभिनंदन कर रही थी।
उपसर्ग रक्षक श्री नवकार
उस समय हम मालव प्रदेश में विचरण कर रहे थे। इस प्रदेश के लोग धर्म-स्वरूप से अनजान थे, उससे कभी बिना समझ में साधु को उपद्रव कर बैठते थे।
विहार करते हुए धारानगरी में आने का हुआ। प्राचीन तीर्थ भूमि होने से शान्ति से जिन मंदिरों के दर्शन किये।
यथायोग्य समय पर स्थंडिल भूमि की ओर जाने लगे तब अज्ञानी लोगों नें प्रथम अपशब्दों से उपद्रव की शुरूआत की। लोगों का समूह बड़ा होने लगा। मैंने भयभीत होकर अभय देने वाले श्री नवकार महामंत्र का स्मरण चालु किया।
लोगों का उपद्रव चालु था। मेरा जाप चालु था। उन्होंने पत्थर फेंकना प्रारंभ किया। मैं शान्ति से अपने स्थान की ओर जाने लगा। पत्थर बढ़ने लगे। पत्थर लगने से हाथ में रही हुई तरपणी के टुकड़े हो गये ।
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