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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? मूलजी जेठा मार्केट में दुकान मिलना मुश्किल है। वहां दुकान खोलने के बाद भी एक लाख की पूंजी की आवश्यकता पड़ेगी।' इसलिए यह असंभव लगता है।" मगर थोड़े दिन बाद मेरी इच्छानुसार हुआ। दुकान मिल गयी। हम थोड़े महीने बाद मुम्बई में रहने के लिए एक मकान की खोज में थे। हमसे एक व्यक्ति ने बात की कि एक जैन भाई को मकान किराये पर देना है। हमनें भी प्रार्थना-पत्र दिया। तीन सौ प्रार्थना-पत्रों में से हमारा प्रार्थना-पत्र पास हो गया। सभी सुविधायुक्त नया मकान बिना पघड़ी के मिल गया। दो मिनट का स्टेशन का रास्ता और पांच मिनट में जिनमंदिर पहुँच सकें ऐसे अनुकूल स्थान पर मकान मिला था।
मझे ऐसे छोटे-बड़े अनुभव होते रहते हैं। मेरी बहिन को अस्थमा की व्याधि थी। मुम्बई में डॉ. कोहियाजी आदि के पास इलाज करवाया। मिरज ले गये, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। रोग इतना बढ़ा कि सारी-सारी रात आराम कुर्सी पर निकालनी पड़ती थी। थोड़ा भी सोया नहीं जा सकता था। मेरे पास तो उपचार के रूप में यह भावना थी। मैंने उन्हें यह |भावना बतायी। में स्वयं सुबह "सभी जीव निरोगी बनें।" यह भावना करते समय उनके ऊपर विशेष लक्ष्य रखता, उनका नाम लेकर निरोगी बनें ऐसी भावना करता। थोड़े समय में उन्हें कुछ स्वास्थ्य लाभ हुआ।
आज वह एकदम स्वस्थ हैं। __ मन की जांच और भावना
इन सब कार्यों में मुझे मन की जाँच का बहुत महत्त्व दिखाई दिया। में इसलिए जितना संभव हो उतना कम बोलता हूँ। फिर भी किसी प्रसंग में किसी को दो शब्द कभी कह दिये हों या किसी का मन-दुःख हो गया हो तो मेरी भावना का "फ्युज" उड़ जाता है। प्रातः काल भावना के लिए बैठता हूँ लेकिन कार्य आगे बढ़ता ही नहीं है। वह व्यक्ति बीच-बीच में मनोभूमिका में आता ही रहता है। में सामने से जाकर क्षमायाचना करता हूँ, तब जाकर कार्य सरलता से बनता है। एक उदाहरण देता हूँ, एक बार मैंने एक फ्रेम की दुकान पर फोटो मढाने के लिए दिया। बिल