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- जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार? - साढे सात रूपये का था। मैंने कहा, "इतने नहीं होते हैं। सात रूपये सही हैं।" 'नहीं सेठ! जो कहा है, वह वाजिब है। मुम्बई में यदि आप यह कार्य करवाते हैं तो इससे भी ज्यादा खर्च होता है। फिर भी मैं सात रूपये देकर घर आया। दूसरे दिन जब सवेरे भावना करने बैठा तो भावना सही नहीं हुई। मैंने जांच की, जरुर कहीं भूल हुई है। मैंने फ्रेमवाले की दुकान जाकर उसे कहा, "अली बाबा! आपने कल सही बात कही थी, आपने कार्य बहुत ही अच्छा किया है। यह एक रूपया लो।" वह खुश हो गये। उसके बाद ही मेरी भावना सही चली। कभी मन्दिर में पूजारी के साथ दो शब्द बोल दिये हों तो काम रुक जाता है। फिर दोबारा मन्दिर दर्शन करने जाता हूँ, चार-आठ आने देकर पूजारी को खुश कर क्षमापना करता हूँ, फिर ही मेरा कार्य सही होता है।
मेरी प्रवृत्ति बहुत कम है। इसलिए बाहर के लोगों से काम कम ही पड़ता है और कुटुम्बीजन तो खूब ही अनुकूल हो गये हैं। मैं सभी को | यह भावना बताता हूं। उन्हें कहता हूँ कि, "तुम्हें सुख चाहिये तो सुख
को बोना गुरु करो-दूसरों को सुखी करो, दूसरे सुखी हो ऐसी भावना करो।" इससे मेरा मन बिगड़ने के प्रसंग कम ही आते हैं। फिर भी में मन की जाँच करता रहता हूँ कि मन में क्या विचार चल रहे हैं? मैं किसी से मिलता हूँ या बातचीत करता हूँ, तब भी नीच-बीच में यह मन की जाँच चालु रखता हूँ।
सभी जीवों को सखी देखने की भावना का यह परिणाम आया कि आज सारा विश्व मेरा मित्र बन गया है। मैं किसी अनजान स्थान पर जाता हूँ वहां भी मेरे साथ बात करने वाले मानो चिरपरिचित हों इस प्रकार मित्रता का वर्तन करते हैं। उनको मेरे प्रति प्रेम उत्पन्न होता है और | फिर मुझसे मिलने की तमन्ना मन में रखते हैं।
___ एक बार मैं उठा तो पैर में कोई जन्तु हो ऐसा मुझे महसूस हुआ। मुझे लगा कोई बड़ा जीव है। अंधेरा था। मैं रात्रि में लालटेन या लाईट नहीं रखता हूँ। मेरे उठने का समय हो गया था। मैं बिस्तर सिमटकर
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