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• जिसके दिल में श्री नवकार, उसे करेगा क्या संसार ?
नवकार के सतत स्मरण का परिणाम
इससे मेरा रोग गया, इतना ही नहीं, मेरी आर्थिक स्थिति भी सुधरी, मानसिक विकास हुआ और मेरा शरीर भी बहुत अच्छा हो गया। मैं लाईट लेने के बाद निश्चित समय के बाद अस्पताल बताने जाता । एक बार वजन करने के कांटे पर नया आदमी था । वजन करने के लिए मेरा नाम पुकारा, "गुलाबचन्द भाई... मैं जाकर खड़ा हुआ। मुझे देखकर उसने कहा, 'तुम क्यों आए ? मरीज को खड़ा करो।' मुझे कहना पड़ा, 'मैं ही मरीज हूँ।' मैं मरीज होऊंगा, ऐसी कोई कल्पना भी न कर सके ऐसा मेरा शरीर हो गया था। आज मैं सभी प्रकार की खुराक ले सकता हूँ । कोई परहेज नहीं रखता। मैं तंदुरूस्त हूँ।
मेरी आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो गया है और मेरा मानसिक विकास हुआ हो, ऐसा मुझे अनुभव होता है। आज मैं 2 हजार की सभा में भी नीडरता से बोल सकता हूँ और मेरे विचार सभा में घुसा सकता हूँ। मेरा अभ्यास बहुत कम है और आज तक मैंने सभा में किस प्रकार से बोलना, इसका अभ्यास भी नहीं किया और ना ही किसी का मार्ग दर्शन लिया। फिर भी एक-दो ऐसे प्रसंग उपस्थित हुए, तब मैं दो हजार लोगों की सभा के समक्ष अच्छी तरह से बोल सका था।
कभी मुझे अन्दर से लगता है कि, "अमुक व्यक्ति को मिले बहुत दिन हो गये, उनसे मिलना है, "तो मैं घर से बाहर निकलता हूँ, सीढ़ियां उतरता हूँ कि, वहां वह व्यक्ति सामने से मिल जाता है। काम में कुछ गड़बड़ हुई हो, कुछ दिमाग में नहीं आता हो कि, इसमें क्या करना? तो मैं तीन नवकार गिनकर सोचता हूँ कि तुरन्त मुझे योग्य मार्गदर्शन मिल जाता है। आर्थिक परिस्थिति में ऐसा लगता है कि इतनी जरुरत है, तो सामने से कोई पार्टी मिल जाती है कि " अभी हमारे इतने रूपये संभालो ।" कितनी ही बार स्फुरणा होती है कि अमुक कार्य अमुक प्रकार से करना । एक बार मुझे विचार आया कि 'मूलजी जेठा मार्केट' में दुकान लेनी है। मेरे भाई कहने लगे कि, 'पचास हजार पघड़ी देने के बाद भी
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